रात के करीब दस बजे, सरोज घर लौटी तो चेहरे पर अजीब-सी चमक थी। जैसे कोई बहुमूल्य खजाना पा लिया हो। “मिल गया! मिल गया!” उसकी ये खुशी भरी चीख सुनकर उसकी माँ, कुसुम, जो बिस्तर पर लेटी थी, चौंककर बैठ गई।
“क्या पा लिया री? क्या हो गया तुझे?” माँ ने संदेहभरी आवाज़ में पूछा।
“कुछ नहीं माँ, वैसे ही…” सरोज ने बात को टालने की कोशिश की।
“झूठ मत बोल! मैं सुबह से देख रही हूँ, तेरी आँखें किसी अजनबी खुशी में चमक रही हैं। और ये बैग में कपड़े क्यों डाल रही है? कहीं जा रही है क्या?” माँ की आवाज़ में संशय था।
सरोज हड़बड़ा गई। उसने आधे झूठ-आधे सच से बात संभाली, “माँ, कॉलेज के ट्रिप पर जा रही हूँ। कुछ दिन के लिए।”
माँ की आँखों में परेशानी उभर आई, “बेटी, ये तो ठीक है पर ऐसे ट्रिप के लिए रुपये-पैसे की भी जरूरत है, और मेरी तबियत भी खराब चल रही है।”
सरोज की निगाह झुक गई। उसे अपनी माँ की स्थिति का ख्याल था, पर अब क्या कहती? वह कॉलेज ट्रिप पर नहीं, बल्कि अपने प्रेमी अशोक के साथ मुंबई भागने की तैयारी कर रही थी। अशोक उसे अपने परिवार से मिलवाने के बहाने मुंबई बुला रहा था, और उसने वादा किया था कि सबकी रजामंदी से शादी करेंगे।
सरोज जानती थी कि उसकी माँ उसे अशोक के साथ खुशी-खुशी जाने देती। पर एक अजीब सा डर था कि कहीं उसके निर्णय को लेकर माँ कोई सवाल न उठाए। घर की आर्थिक हालत तंग थी, माँ एक धनी घर में रसोइया थीं और मुश्किल से तीन हजार रुपये महीना कमाती थीं, उसी में दोनों की गुजर-बसर होती थी। लेकिन सरोज की उम्मीदों का आकाश अशोक ने इतना रंगीन बना दिया था कि उसे सब कुछ ठहरा सा लगा।
गुज़रे दिनों की कड़वी यादें
सरोज के मन में अशोक के वादों की चमक के बीच अचानक पुष्पा दीदी की यादें घनी हो गईं। पुष्पा दीदी उसकी माँ के मालिक की बेटी थी। उससे सात-आठ साल बड़ी पुष्पा को उसने बचपन से देखा था। स्कूल से छुट्टी के बाद सरोज माँ के पास चली जाती थी, वहीं पहली बार उसने पुष्पा को जाना। सुंदर और आत्मनिर्भर दिखने वाली पुष्पा की जिंदगी कड़वी थी, वह अपनी सौतेली माँ के जुर्म का शिकार थी। पुष्पा दीदी को बात-बात पर डांट-फटकार मिलती थी, जबकि उनकी छोटी बहन सुधा पर माँ अपना सारा प्यार लुटाती थी।
एक दिन जब पुष्पा उसे अपने कमरे में ले गई तो उनकी माँ ने पुष्पा को बुरी तरह पीटा, सरोज को भी थप्पड़ मारा। उसी रात सरोज ने माँ से पूछा, “माँ, पुष्पा दीदी की माँ उन्हें इतना क्यों मारती है?”
माँ ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, “वो उसकी सगी नहीं, सौतेली माँ है। हर माँ अपने बच्चों के लिए अच्छी नहीं होती।”
कुछ दिनों बाद पुष्पा ने एक किताब के अंदर एक मोबाइल नंबर लिखा और सरोज को थमाते हुए बोली, “आज मैं घर छोड़ रही हूँ। मुझे किसी ने जिंदगी की नई राह दिखाई है, जो इस दुनिया से दूर ले जाएगी। ये नया नंबर है, मेरी माँ को मत बताना। अगर वो मेरे जाने के बाद रोए तो उन्हें दे देना, वरना रहने देना। मुंबई जा रही हूँ, कभी मिलना हो तो इस नंबर पर बात करना।”
उसके बाद, पुष्पा दीदी ने घर छोड़ दिया और जैसे हवा में घुल गई। लेकिन सरोज ने उस नंबर को संजोए रखा, और आज कई सालों बाद उसने उसी नंबर को ढूंढ निकाला। मन में एक उम्मीद जगी कि वह पुष्पा दीदी से संपर्क करेगी। नंबर मिलते ही सरोज का दिल खुशी से झूम उठा। उसने बिना देर किए उसी रात नौ बजे नंबर पर कॉल मिलाई। घंटी दो बार बजी, लेकिन फोन नहीं उठा। थोड़ी देर बाद उसी नंबर से व्हाट्सएप पर मैसेज आया, “सरोज बहन, इस वक्त बहुत व्यस्त हूँ। रात एक बजे बात करूंगी।”
दीदी का मैसेज देख सरोज को एक अजीब खुशी हुई, लेकिन एक सवाल भी उठा कि आखिर रात एक बजे की ही क्यों फुर्सत है? ये कैसी जिंदगी जी रही हैं दीदी? इसी उधेड़बुन में उसकी आँखों से नींद गायब हो गई।
रहस्य और सच्चाई का पर्दाफाश
ठीक रात एक बजे व्हाट्सएप पर मैसेज आया, “जगी है तो बात कर, सरोज। नींद नहीं आई होगी ना?”
“दीदी! आप कैसी हो?” सरोज ने जल्दी-जल्दी टाइप किया।
“ठीक हूँ। तेरा सुन, माँ कैसी है?” दीदी की बातों में अपनापन था।
“माँ ठीक है। मैं भी ठीक हूँ। पर आपने मुझे बिना पहचान के पहचान लिया? कैसे?”
“ये नंबर मेरे पास है। इसे मैंने बस तुझे दिया था। याद नहीं क्या?” दीदी का जवाब सुन, सरोज हल्का हंसी।
“आपने कभी बताया नहीं कि आप कहाँ हो, क्या कर रही हो?” सरोज ने फिर सवाल किया।
“छोड़ ना, ये एक अंधेरी दुनिया है, बहन। बता, क्या कर रही है?” दीदी की आवाज़ में दर्द का साया था।
सरोज ने जवाब दिया, “दीदी, मैं भी अब मुंबई आ रही हूँ, किसी से शादी करने। अशोक मुझे वहां बुला रहा है।”
“अशोक?” दीदी का जवाब चौंकाने वाला था। “पगली, उसकी बातों में मत आ। मुझे भी ऐसा ही एक प्यार करने वाला मिला था, जिसने मुझे बर्बाद कर डाला। मेरे जैसी गलती मत करना।”
सरोज के दिल की धड़कन बढ़ गई। “क्या मतलब? अशोक ने तुम्हारे साथ क्या किया था?”
दीदी ने हंसकर जवाब दिया, “देख, वह तुझे भी ऐसे ही बहकाएगा। उसका मोबाइल देख, उसमें सैकड़ों लड़कियों के अश्लील वीडियो होंगे, मेरी भी तस्वीरें होंगी। सावधान रह, उससे मिलना भी मत।”
सरोज की आँखों के सामने सब अंधेरा छा गया। वह अशोक की बातें, उसका प्यार और उसके सपने, सब कुछ झूठ लगने लगा। उसने तय किया कि अब वह अशोक का असली चेहरा दुनिया के सामने लाएगी।
अशोक का भंडाफोड़
अगले दिन अशोक जब स्टेशन पर इंतजार कर रहा था, सरोज उसकी कॉलर पकड़कर चिल्लाई, “चोर! चोर!” स्टेशन पर शोर मच गया, पुलिस आ गई और उसकी माँ भी आ गई। अशोक के पास से गहने बरामद हुए और जब पुलिस ने उसका मोबाइल देखा, तो उसमें दर्जनों लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो मिले। पुलिस ने अशोक को गिरफ्तार कर लिया।
जाँच के दौरान पता चला कि अशोक एक बड़े गिरोह का हिस्सा था, जो भोली-भाली लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाकर उनकी जिंदगी बर्बाद करता था। पुष्पा और कई अन्य लड़कियों को इस गिरोह से आज़ादी मिली।
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सरोज की तारीफ करते हुए कहा, “इस लड़की की समझदारी से आज इतने बड़े अपराध का पर्दाफाश हुआ है। इसके लिए इसे पुरस्कृत किया जाएगा।”
सरोज ने अपनी हिम्मत से सिर्फ अपनी जिंदगी को नहीं, बल्कि उन दर्जनों लड़कियों की जिंदगी को भी बचा लिया जो अशोक की काली दुनिया का शिकार बन चुकी थीं। पुष्पा दीदी का वही जादुई मोबाइल नंबर, जो कभी एक रहस्य था, आज उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गया था।
इस तरह सरोज की यह यात्रा केवल अपने प्रेम के लिए नहीं, बल्कि उन मासूम लड़कियों को बचाने का जरिया भी बन गई, जो जीवन की अंधेरी गलियों में खो चुकी थीं।