सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 1947 की असेंबली में मुस्लिम लीग ने अलग पहचान, अलग नियम और अलग व्यवस्था की मांग की थी। तो सरदार पटेल ने पूछा कि आप देश के लिए कैसे योगदान दे सकते हैं?

ये वही मुस्लिम लीग है जो जिन्ना की थी, नेहरू ने भी साथ बनाई थी सरकार, इतिहास का जिक्र कर सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस को दिया जवाब

ये वही मुस्लिम लीग है जो जिन्ना की थी, नेहरू ने भी साथ बनाई थी सरकार, इतिहास का जिक्र कर सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस को दिया जवाब

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मुस्लिम लीग का पुराना साथी बताया है। उनके इस बयान पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इतिहास के संदर्भ में उल्लेख किया कि मुस्लिम लीग वही है जो मोहम्मद अली जिन्ना के समय में थी और 1946 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल की गई थी। इस वक्त पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली को नेहरू की सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर बनाया गया था। त्रिवेदी ने यह भी बताया कि केरल में कांग्रेस का सबसे बड़ा समर्थक मुस्लिम लीग ही है और यही वह संगठन है जो मोहम्मद अली जिन्ना के समय में भी था।

कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया, जिसमें 5 न्याय, 5 गारंटी का जिक्र किया गया। इस घोषणापत्र के प्रकट होते ही बीजेपी ने कहा कि इसमें मुस्लिम लीग की छाप नजर आ रही है। इस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग के पास शिकायत कर दी। मल्लिकार्जुन खरगे ने बताया कि मुस्लिम लीग का जिक्र करके पोलराइजेशन हो रहा है और मुस्लिम लीग की पुरानी साथी बीजेपी है।

ये वही मुस्लिम लीग है जो जिन्ना के समय थी, बोले सुधांशु त्रिवेदी

सुधांशु त्रिवेदी ने टीवी चैनल पर चल रही मुस्लिम लीग के मुद्दे को लेकर डिबेट में कहा कि मुस्लिम लीग आज केरल में कांग्रेस के साथ गठबंधन में है। उनका सबसे बड़ा समर्थक वायनाड में मुस्लिम लीग है, इसलिए कांग्रेस ने अपना झंडा वहाँ नहीं लगाया, वरना मुस्लिम लीग का भी झंडा दिखाया जाता है, जैसा पिछली बार दिखा था। उन्होंने कहा कि आज के दिन कांग्रेसी दावा करते हैं कि मुस्लिम लीग अलग है, परंतु उस समय मुस्लिम लीग अलग नहीं थी। वे मोहम्मद इस्माइल द्वारा स्थापित इंडियन मुस्लिम लीग के बारे में बताते हुए कहा कि इसे 1948 में बनाया गया था, और 1947 से पहले इस्माइल भारत के दक्षिणी भाग में जिन्ना की मुस्लिम लीग के चीफ थे। उन्होंने कहा कि नाम की परिवर्तन से सब कुछ बदल गया है, परंतु वास्तव में वही संगठन है।

सरदार पटेल का जिक्र करते हुए क्या बोले सुधांशु त्रिवेदी?

उन्होंने इसके बाद सरदार पटेल का उल्लेख किया। वे कहते हैं कि 28 अगस्त 1947 को संविधान सभा में मुस्लिम लीग के सदस्य ने बड़े भाई की तरह अलग-अलग चीजें मांगी थीं, लेकिन सरदार पटेल ने उन्हें समझाते हुए कहा था कि इसके लिए समय अभी नहीं आया है। इसके अलावा, 3 जनवरी 1948 को कोलकाता में उन्होंने कहा था कि भारत में चार करोड़ मुसलिम हैं, जिनमें अधिकांश ने पाकिस्तान के लिए वोट किया था, लेकिन कुछ भी नहीं बदला। अब, उन्होंने लोगों से कहा कि अब छोटे और बड़े भाई की बात मत करें, और देश के लिए कैसे योगदान दिया जा सकता है, वही सोचें।

सुधांशु त्रिवेदी ने आगे कहा कि आज मैं भी पूछना चाहता हूं कि जो हम मुस्लिमों से कहते हैं कि राष्ट्र की मुख्यधारा में आइए और योगदान दीजिए. ये कहते हैं कि अलग पहचान रखिए, उनके लिए अलग नियम और अलग व्यवस्था रखिए. ये थी मुस्लिम लीग की मांग. मल्लिकार्जुन खरगे के बयान पर सुधांशु त्रिवेदी ने इतिहास का जिक्र करते हुए कहा, ‘अब इसका टेक्नीकल जवाब भी दे देता हूं. खरगे जी को ये ध्यान रखना चाहिए, वो वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन लोग उन्हें जो फीडबैक देते हैं. 1941 की असेंबली में मुस्लिम लीग के साथ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने सरकार नहीं बनाई थी. ए. के. फजलुल हक की पार्टी थी कृषक प्रजा पार्टी, उसके साथ मिलकर सरकार बनाई थी और उसके साथ मिलकर मुस्लिम लीग को सत्ता से बाहर किया था.’

नेहरू की अंतरिम सरकार में कौन थे फाइनेंस मिनिस्टर?
उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरी बात पूछना चाहता हूं कि उसके बाद तो वह जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में रहे और 1946 में जब नेहरू ने 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बने, जब वायसराय वेवल ने शपथ दिलाई, जब किंग जॉर्ज VI की प्रतिनिष्ठा की शपथ ली यूनियन जैक झंडे के नीचे तो उनकी सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर कौन था.  लियाकत अली, जो पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बना. गिड़गिड़ा कर कहा मुस्लिम लीग से कि हमारी सरकार में आ जाओ. मैं पूछना चाहता हूं कि लियाकत अली वित्त मंत्री थे या नहीं. भागना नहीं चाहिए. वायनाड भागने से कुछ नहीं होगा.’

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, अंग्रेज थे कांग्रेस के पुरखे
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, ‘उसके बाद तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू की कैबिनेट में रहे स्वतंत्रता के बाद. चलिए उसके बाद भी ये हमसे जोड़ देते हैं कि वो हमारे पुरखे थे. बीजेपी तो तब तक बनी भी नहीं थी. हम तो बने 1951 में, फिर भी आप जोड़ रहे हैं. अब अगर ऐसे पुरखे जोड़ें तो कांग्रेस के पुरखे कौन थे? एलेन ओक्टेवियन ह्यूम 1885 में. कांग्रेस के संस्थापक तो वही थे और पहले अध्यक्ष कौन थे,  व्योमेश चंद्र बनर्जी, जो लंदन में जाकर क्रिश्चन भी बन गए और वहीं की सदस्यता ग्रहण कर ली. सिर्फ एलेन ओक्टेवियन ह्यूम ही नहीं जॉर्ज यूल, अलफ्रेड वेब और विलियम वेडरबर्न, ये सब कांग्रेस के शुरुआती अध्यक्ष थे. तो कांग्रेस के पुरखों पर जाएं तो इनके पुरखे तो अंग्रेज थे.’