भारतीय राजनीति में एक ऐसा मुद्दा है जिस पर लगातार चर्चाएं होती रहती हैं, और वह है वित्त मंत्री के लोकसभा चुनाव में योगदान का प्रश्न। 40 साल के इतिहास में इस मुद्दे पर आए तथाकथित संख्या का अनुसरण करते हुए, देखा गया है कि केवल 8 वित्त मंत्री ने लोकसभा चुनाव में प्रतिस्पर्धा की है। और इसमें से एक को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है।

भारत में वित्त मंत्री क्यों नहीं लड़ते लोकसभा का चुनाव: 40 साल में 8 ने हाथ खड़े किए; एक लड़े तो बुरी तरह हारे

1971 में भारतीय राजनीति में वित्त मंत्रालय का महत्वाकांक्षी नेता किसी भी प्रकार के चुनाव या निर्वाचन से बचे रहे, लेकिन 1984 के बाद से, यह मुद्दा विवादों में लिप्त हो गया है। चूंकि 1984 में पूर्व वित्त मंत्री प्रद्युम्न सिंह के द्वारा वित्त मंत्रालय के साथ चुनाव में वाद-विवाद करने के बाद यह परंपरा चार्ट की गई है।

वर्तमान में भी, वित्त मंत्री के लोकसभा चुनाव में प्रतिस्पर्धा करने के प्रस्ताव पर सियासी विमर्श चल रहा है। इसके बावजूद, अब तक यह मुद्दा किसी साकार रूप में नहीं उतरा है। विभिन्न राजनीतिक दलों में इसके बारे में अलग-अलग धारणाएं हैं।

कुछ लोग मानते हैं कि वित्त मंत्री को चुनाव में नहीं लड़ना चाहिए क्योंकि यह उनके कामकाज को प्रभावित कर सकता है, जबकि कुछ लोग इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा मानते हैं। इस मुद्दे पर विवाद चल रहा है और देश की राजनीतिक दलें अब तक इस पर एक सामंजस्य नहीं पा रही हैं।

वित्त मंत्री के लोकसभा चुनाव में प्रतिस्पर्धा की गई सबसे हाल ही में हुई थी, जब 2022 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चुनाव में प्रतिस्पर्धा की। लेकिन उन्हें चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले भी 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में उन्हें वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था।

वित्त मंत्री के चुनाव में प्रतिस्पर्धा का मुद्दा अब तक खुला है और यह देखना है कि इस पर आगे कैसे काम किया जाता है। यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण और चर्चित विषय बना रहेगा।

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