🚩 परिचय:
संत रविदास जी भारत के महान संत, समाज सुधारक और भक्त कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं और विचारों से समाज में फैली जाति-व्यवस्था, भेदभाव और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक, संत रविदास ने एकता, प्रेम और ईश्वर भक्तिका संदेश दिया।
जीवन परिचय
🔹 जन्म: 1377 ई. (कुछ मान्यताओं के अनुसार 1450 ई.)
🔹 स्थान: सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
🔹 माता-पिता: श्रीमती कर्मा देवी एवं श्री संतोक दास
🔹 धर्म: हिंदू (भक्ति आंदोलन के प्रचारक)
🔹 मुख्य उपदेश: जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का विरोध, भक्ति एवं प्रेम का संदेश
🔹 समाधि: 1528 ई.
🔸 जन्म और प्रारंभिक जीवन
संत रविदास का जन्म एक चर्मकार (चमड़े का कार्य करने वाले) परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ईश्वरभक्त थे, और उन्होंने बालक रविदास को भी धार्मिक संस्कार दिए। बचपन से ही संत रविदास में आध्यात्मिक झुकाव था और वे संतों की संगति में रहने लगे।
🔸 शिक्षा एवं आध्यात्मिक यात्रा
संत रविदास ने औपचारिक शिक्षा भले ही अधिक न प्राप्त की हो, लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान, भक्ति और तर्कशक्ति से समाज को जागरूक किया। उनका जीवन सादगी, भक्ति और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया कि ईश्वर भक्ति और सच्चे आचरण के लिए जाति या ऊँच-नीच का कोई महत्व नहीं है।
योगदान एवं विचारधारा
🔹 जातिवाद का विरोध
संत रविदास समाज में व्याप्त जातिवाद और ऊँच-नीच के भेदभाव के सख्त विरोधी थे। उन्होंने कहा कि ईश्वर के दरबार में सभी समान हैं और कर्म ही व्यक्ति की असली पहचान है।
🔹 भक्ति आंदोलन में योगदान
वे भक्ति आंदोलन के महान संतों में से एक थे। उन्होंने समाज को निराकार भक्ति का मार्ग दिखाया और मूर्तिपूजा की जगह सीधे परमात्मा की उपासना करने पर बल दिया।
🔹 रचनाएँ और शिक्षाएँ
संत रविदास की कई रचनाएँ “गुरु ग्रंथ साहिब” में संकलित हैं। उनके दोहे और पद मानवता, समानता और ईश्वर प्रेम का संदेश देते हैं। उन्होंने कहा:
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”
(अर्थ: यदि मन शुद्ध और पवित्र है तो गंगा स्नान की आवश्यकता नहीं, पवित्रता मन की होती है, बाहरी नहीं।)
🔹 समरसता और भाईचारा
उन्होंने समाज में एक ऐसे विश्व की कल्पना की जिसमें कोई भेदभाव न हो। उनके शब्दों में:
“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसै, रविदास रहे प्रसन्न।।”
(अर्थ: मैं ऐसा राज्य चाहता हूँ जहाँ सबको समान रूप से अन्न मिले, कोई ऊँच-नीच न हो, सब समान हों और खुशी-खुशी रहें।)
महत्व एवं प्रभाव
🔹 सामाजिक सुधारक: उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव और अस्पृश्यता का विरोध किया और समानता का संदेश दिया।
🔹 गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान: उनकी रचनाएँ सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ “गुरु ग्रंथ साहिब” में भी सम्मिलित हैं, जो उनकी शिक्षाओं की महत्ता को दर्शाता है।
🔹 रविदासिया पंथ: उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर उनके अनुयायियों ने “रविदासिया पंथ” की स्थापना की, जो आज भी उनके विचारों का प्रचार-प्रसार कर रहा है।
🔹 राजनीतिक और सामाजिक प्रेरणा: आज भी उनकी शिक्षाएँ दलित उत्थान और सामाजिक न्याय के आंदोलनों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
संत रविदास जयंती और उनकी विरासत
हर वर्ष माघ पूर्णिमा को संत रविदास जयंती मनाई जाती है। इस दिन वाराणसी, पंजाब और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भव्य आयोजन किए जाते हैं।
🔹 प्रमुख स्थल:
- सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी: यहाँ संत रविदास का जन्म स्थान स्थित है, जिसे “श्री गुरु रविदास जन्मस्थली मंदिर” के रूप में विकसित किया गया है।
- गुरु रविदास गुरुद्वारा, अमृतसर: सिख समुदाय में भी उनकी बड़ी मान्यता है।
- संत रविदास के अनुयायी: भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों (विशेष रूप से इंग्लैंड, कनाडा और अमेरिका) में भी उनके अनुयायी हैं।
निष्कर्ष
संत रविदास जी न केवल एक संत थे, बल्कि वे एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने उपदेशों और कविताओं के माध्यम से भक्ति, प्रेम, समानता और सामाजिक न्याय का संदेश दिया। आज भी उनके विचार प्रासंगिक हैं और समाज में एकता, प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं।
🚩 जय संत रविदास जी महाराज! 🚩
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