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संबल में जामा मस्जिद पर दंगा: ईंट-पत्थरों का खेल आखिर कब तक?
संबल की जामा मस्जिद के आसपास हुए हालिया दंगे ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर ऐसी घटनाएँ बार-बार क्यों होती हैं? ये ईंट और पत्थर आखिर आते कहाँ से हैं? क्या यह किसी अचानक भड़के गुस्से का नतीजा है, या फिर इसके पीछे एक सोची-समझी साजिश है?
दंगा: असली वजह या दिखावा?
हर बार जब किसी मस्जिद या क्षेत्र में तनाव पैदा होता है, तो यह देखकर हैरानी होती है कि ईंट और पत्थरों का ऐसा ढेर वहाँ कैसे मौजूद होता है। क्या ये किसी निर्माण कार्य के लिए रखे गए थे, या फिर पहले से प्लानिंग के तहत इकट्ठा किए गए थे?
दंगा भड़काने वाले लोग कौन हैं? क्या यह स्थानीय असंतोष है, या फिर बाहर से आए “दंगाई पर्यटक” इसमें अपनी भूमिका निभाते हैं?
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सीखें
सनातन संस्कृति ने हमें हमेशा यह सिखाया है कि धर्म का पालन और सम्मान सबके लिए बराबर हो। लेकिन, यह भी सच है कि जब-जब कोई अपने धर्म के नाम पर उग्रता फैलाता है, समाज में विष घुलता है। ‘गीता’ में भी कहा गया है:
“अधर्म के उत्थान और धर्म की हानि होने पर मैं अवतार लेता हूँ।”
आज अधर्मियों का यह व्यवहार कहीं-न-कहीं इसी बात का प्रमाण है।
ईंट-पत्थरों का खेल: प्लानिंग या इत्तेफाक?
इतिहास गवाह है कि जब-जब ऐसी घटनाएँ हुईं, तो इसमें पहले से तैयारी की बू आती है।
- क्या यह ईंट-पत्थर किसी निर्माण कार्य के लिए रखे जाते हैं, या जान-बूझकर स्टॉक किए जाते हैं?
- स्थानीय प्रशासन इन घटनाओं को रोकने में नाकाम क्यों रहता है?
- क्या स्थानीय मस्जिद प्रबंधन और समाज के नेता इस पर कोई जिम्मेदारी लेंगे?
हिंदुओं पर हमले क्यों?
यह सवाल हमेशा खड़ा होता है कि जब भी तनाव बढ़ता है, तो निशाने पर केवल हिंदू ही क्यों आते हैं? क्या यह नफरत का एजेंडा है? क्या यह “अमन की दुहाई” देने वालों का असली चेहरा है?
इन घटनाओं से जुड़ी मीडिया की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। तथाकथित पत्रकार जैसे रवीश कुमार और ध्रुव राठी कभी भी सच्चाई को सामने नहीं लाते, बल्कि ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे हिंदू ही गुनहगार हो।
समाधान: हिंदू समाज को जागना होगा
- एकजुटता: हिंदू समाज को इन घटनाओं के प्रति सतर्क और संगठित रहना होगा।
- प्रशासन पर दबाव: प्रशासन से सख्त कार्रवाई की माँग करनी होगी।
- लोकल सुरक्षा: स्थानीय स्तर पर रक्षक समितियाँ बनानी होंगी।
- सांस्कृतिक जागरूकता: सनातन धर्म की महानता को समझें और प्रचारित करें।
निष्कर्ष
दंगा केवल पत्थरों का खेल नहीं है, यह समाज में जहर घोलने की एक चाल है। हिंदू समाज को अब जागना होगा। समय आ गया है कि हम अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए मजबूत कदम उठाएँ।
जैसा भगवान श्रीराम ने कहा था:
“वीरता ही धर्म की सच्ची पहचान है।”
आज हमें उसी वीरता को अपनाना होगा और उन हाथों को रोकना होगा जो पत्थर उठाते हैं।
🚩जय श्रीराम! वंदे मातरम!