जय श्री राम! 🙏🏻
प्रिय भाइयों और बहनों,
यह ब्लॉग आज एक बेहद महत्वपूर्ण विषय पर आधारित है। यह विषय हमारी आत्मा, हमारी सोच और हमारे कर्मों से गहराई से जुड़ा है। यह है, दूसरों का सम्मान और अपनी योग्यता को सही दिशा में प्रस्तुत करना।
आप स्वयं एक उपहार हैं
सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि आप स्वयं एक अनमोल उपहार हैं।
आपकी प्रतिभा, आपका कौशल और आपकी मेहनत, ये सभी चीजें आपको अद्वितीय बनाती हैं। लेकिन, यह सब तभी सार्थक है जब आप इनका उपयोग सही तरीके से करें।
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
अर्थात, आप अपने आप को ऊपर उठाने के लिए जिम्मेदार हैं। अपने कर्मों, विचारों और व्यवहार से आप अपना उद्धार कर सकते हैं।
इसलिए, यह न केवल हमारा कर्तव्य है कि हम अपने आप को सम्मान दें, बल्कि दूसरों का भी सम्मान करें।
दूसरों को नीचा दिखाने का कोई अधिकार नहीं
भले ही आप कितने भी योग्य हों, कितने भी विद्वान हों, दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करना आपकी महानता को कम करता है। आप अपनी जगह पर सही हो सकते हैं, परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि हर किसी को आपकी बात माननी चाहिए। दूसरों की राय का आदर करना उतना ही आवश्यक है जितना अपने विचारों को व्यक्त करना।
अक्सर हम देखते हैं कि लोग अपनी योग्यता दिखाने के लिए दूसरों की गलतियां ढूंढ़ने लगते हैं। लेकिन सच मानिए, ऐसा करना आपके व्यक्तित्व को छोटा दिखाता है। जो सच्चा ज्ञानी होता है, वह अपनी बात शांति और धैर्य से कहता है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं:
“परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।”
अर्थात, दूसरों का भला करना सबसे बड़ा धर्म है, और दूसरों को कष्ट देना सबसे बड़ा पाप।
क्या करें और क्या न करें?
- अपनी योग्यता पर गर्व करें, अहंकार नहीं।
यह ठीक है कि आप में विशेष कौशल और ज्ञान है। परंतु इसे अहंकार में बदलने का मतलब है, अपने ज्ञान का अपमान करना। - दूसरों से शालीनता से बात करें।
आपकी बातें और व्यवहार ही आपकी पहचान बनाते हैं। अगर आप विनम्रता से अपनी बात कहेंगे, तो लोग आपको सुनने के लिए प्रेरित होंगे। - अपनी आलोचना को स्वीकारें।
अगर कोई आपकी आलोचना करता है, तो उसे समझने की कोशिश करें। आलोचना से हम सुधार की दिशा में बढ़ सकते हैं। - दूसरों को उनकी गलती का एहसास करवाएं, पर सही तरीके से।
अगर कोई गलत है, तो उन्हें प्यार और समझदारी से समझाएं। अपमान करने से समस्या सुलझने की बजाय और बढ़ती है।
मेरी व्यक्तिगत राय
मैं कोई ज्ञानी महात्मा नहीं हूं, न ही किसी को सलाह देने का अधिकार रखता हूं। परंतु, अपने अनुभव से जो बातें मैंने समझी हैं, वह आपसे साझा कर रहा हूं। आप मेरी बात मानें या न मानें, यह पूरी तरह आपकी इच्छा है।
मेरा यह मानना है कि इस जीवन में हर व्यक्ति को आत्मसम्मान और दूसरों का सम्मान करना सीखना चाहिए। यह हमारे समाज को बेहतर बनाता है। अगर हम दूसरों को सम्मान देंगे, तो हमें भी सम्मान मिलेगा।
अब आपकी बारी है!
मित्रों, अब मैं आपसे जानना चाहता हूं।
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि दूसरों का सम्मान करना और उनकी बात सुनना हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा होना चाहिए? क्या आप मानते हैं कि योग्यता का अर्थ दूसरों को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित करना है?
कृपया नीचे कमेंट में अपने विचार साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं न केवल मुझे प्रेरित करेंगी, बल्कि और भी लोगों को सही राह दिखाने का माध्यम बनेंगी।
🙏🏻 जय हिंद, जय भारत, जय श्री राम!
आपका अपना,
सुनिल चौधरी (गुरुजी)