भारत में पहली बार एक चयन समिति ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए बैठक की। यह बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के बीच 17 फरवरी की शाम को हुई। यह बैठक वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले आयोजित की गई थी।
बैठक के दौरान राहुल गांधी ने एक असहमति पत्र (Dissent Note) जमा किया, जिसमें उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि जब तक सुप्रीम कोर्ट नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला नहीं सुनाता, तब तक नए CEC की नियुक्ति को टाल दिया जाए।
लेकिन यह नियुक्ति प्रक्रिया पहले कैसे होती थी? अब इसमें क्या बदलाव आया है? और राहुल गांधी ने इस पर आपत्ति क्यों जताई? आइए विस्तार से समझते हैं।
पहले मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कैसे होती थी?
भारत के चुनाव आयोग में तीन सदस्य होते हैं— एक मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो चुनाव आयुक्त (ECs)। हालांकि सभी चुनाव आयुक्त समान होते हैं, लेकिन CEC को “प्रथम व्यक्ति” का दर्जा प्राप्त होता है, ठीक वैसे ही जैसे भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सुप्रीम कोर्ट में होते हैं।
पहले CEC और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई विशेष कानून नहीं था। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर इनकी नियुक्ति करते थे। आमतौर पर यह परंपरा रही है कि मौजूदा CEC की सेवानिवृत्ति के बाद, सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त को यह पद सौंप दिया जाता था। वरिष्ठता का निर्धारण उनकी नियुक्ति की तारीख के आधार पर किया जाता था।
वर्तमान चुनाव आयोग की स्थिति
वर्तमान में चुनाव आयोग के तीन सदस्य हैं:
- मुख्य चुनाव आयुक्त: राजीव कुमार
- चुनाव आयुक्त: ज्ञानेश कुमार
- चुनाव आयुक्त: सुखबीर सिंह संधू
ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू दोनों को 14 मार्च 2024 को एक ही दिन नियुक्त किया गया था और दोनों 1988 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। ऐसे में वरिष्ठता का प्रश्न उठा कि इन दोनों में से कौन वरिष्ठ है? सरकार और चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी अधिसूचना में ज्ञानेश कुमार का नाम पहले आया था, इसलिए उन्हें वरिष्ठ माना गया।
यदि पुरानी प्रणाली जारी रहती, तो राजीव कुमार की सेवानिवृत्ति के बाद ज्ञानेश कुमार स्वाभाविक रूप से CEC बन जाते। लेकिन इस बार मामला इतना सीधा नहीं है।
नई प्रणाली के तहत CEC की नियुक्ति कैसे होगी?
अब मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति “मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023” के तहत की जा रही है। इस कानून में नियुक्ति की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
नई प्रक्रिया:
- खोज समिति (Search Committee) – यह समिति कानून मंत्री (वर्तमान में अर्जुन राम मेघवाल) की अध्यक्षता में दो वरिष्ठ नौकरशाहों के साथ मिलकर संभावित उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करती है।
- चयन समिति (Selection Committee) – यह समिति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री (वर्तमान में गृह मंत्री अमित शाह) से मिलकर बनी होती है।
- समिति द्वारा चयन – चयन समिति के पास खोज समिति द्वारा सुझाए गए पांच नामों के अलावा अन्य नामों पर भी विचार करने का अधिकार है।
- राष्ट्रपति की नियुक्ति – चयन समिति द्वारा चुने गए नाम को राष्ट्रपति द्वारा अंतिम रूप से नियुक्त किया जाता है।
इस प्रक्रिया के तहत ही 17 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राहुल गांधी की बैठक हुई थी, जिसमें CEC और EC पदों के लिए पांच-पांच नामों की सूची समिति के समक्ष रखी गई। हालांकि, राहुल गांधी ने नियुक्ति प्रक्रिया को टालने की मांग की, लेकिन बहुमत के आधार पर निर्णय लिया गया और राष्ट्रपति द्वारा जल्द ही आधिकारिक अधिसूचना जारी होने की संभावना है।
क्या नया कानून पात्रता मानदंड भी तय करता है?
पहले आमतौर पर वरिष्ठ नौकरशाहों को चुनाव आयोग में नियुक्त किया जाता था, लेकिन नए कानून में CEC और EC की नियुक्ति के लिए स्पष्ट पात्रता मानदंड निर्धारित किए गए हैं:
- उम्मीदवार को भारत सरकार के सचिव पद के समकक्ष होना चाहिए या इस पद पर रह चुका होना चाहिए।
- उसे चुनाव प्रबंधन और संचालन का अनुभव होना चाहिए।
- कोई भी व्यक्ति जिसे एक बार CEC या EC बनाया गया है, उसे दोबारा इस पद पर नियुक्त नहीं किया जाएगा।
- यदि कोई चुनाव आयुक्त (EC) बाद में CEC बनता है, तो उसकी कुल सेवा अवधि छह वर्ष से अधिक नहीं हो सकती।
नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव क्यों किया गया?
यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आया। 2015 से 2022 के बीच केंद्र सरकार के विशेषाधिकार को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि संविधान के निर्माताओं ने कभी यह नहीं चाहा था कि CEC की नियुक्ति पूरी तरह से कार्यपालिका के हाथ में हो।
2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब तक संसद कोई नया कानून नहीं बनाती, तब तक CEC और EC की नियुक्ति एक चयन समिति द्वारा की जाएगी जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) शामिल होंगे।
हालांकि, इससे पहले कि कोई नया रिक्त पद आए, सरकार ने दिसंबर 2023 में एक नया कानून पारित किया। इस कानून में चयन समिति से मुख्य न्यायाधीश (CJI) को हटाकर उनकी जगह प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री को शामिल कर दिया गया। इससे सरकार को अंतिम निर्णय लेने का अधिक अधिकार मिल गया।
क्या यह मामला अब समाप्त हो गया है?
नहीं। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस कानून को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला नहीं सुनाता, तब तक विवाद बना रहेगा।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस कानून को चुनौती दी है और दलील दी है कि संसद के पास सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले को बदलने या संशोधित करने का अधिकार नहीं है।
हालांकि याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट राजीव कुमार की सेवानिवृत्ति से पहले इस मामले की सुनवाई करे, लेकिन अदालत ने इसे 19 फरवरी को सूचीबद्ध किया है, यानी एक दिन बाद। जस्टिस सूर्यकांत ने आश्वासन दिया कि अगर कोर्ट इस कानून को असंवैधानिक मानती है, तो उसके प्रभाव पहले से किए गए नियुक्तियों पर भी लागू होंगे।
निष्कर्ष
भारत में पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक नई चयन समिति के माध्यम से की जा रही है। राहुल गांधी ने इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाई गई पारदर्शिता को आंशिक रूप से हटाया गया है। हालांकि, सरकार ने नए कानून को संविधान के अनुरूप बताते हुए इसे लागू किया है।
अब सबकी निगाहें 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जो तय करेगी कि यह नया कानून संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं।
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