“अगर औरंगज़ेब अपनी बेटी भी मुझे दे दे, तब भी मैं इस्लाम स्वीकार नहीं करूंगा!” छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान – ये शब्द थे उस वीर योद्धा के, जिसने धर्म और स्वराज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन अपने आत्मसम्मान को झुकने नहीं दिया। वह योद्धा, जिसकी कहानी भारत के हर सनातनी के दिल को जोश और गर्व से भर देती है। छत्रपति शिवाजी महाराज के वीर पुत्र, हिंदवी स्वराज्य के ध्वजवाहक, छत्रपति संभाजी महाराज!
आज, जब हम अपने गौरवशाली अतीत को याद करते हैं, तब हमें संभाजी महाराज के बलिदान को भुलाना नहीं चाहिए। उनका जीवन केवल एक राजा या योद्धा की कथा नहीं है, बल्कि यह धर्म, स्वाभिमान और अखंड भारत के लिए किए गए संघर्ष की अमर गाथा है।
🔥 वीरता की जन्मस्थली: पुरंदर किला 🔥
छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ। वे छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी धर्मपत्नी सईबाई के पुत्र थे। दुर्भाग्यवश, संभाजी महाराज मात्र दो वर्ष के थे, जब उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद उनकी परवरिश की जिम्मेदारी उनकी दादी जीजाबाई ने संभाली।
माता जीजाबाई ने अपने पोते को सनातन धर्म, राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया। उन्होंने उन्हें यह सिखाया कि एक राजा का सबसे बड़ा धर्म अपनी प्रजा की रक्षा करना और अधर्म के खिलाफ खड़ा होना होता है।
📖 शिक्षा और बुद्धिमत्ता 📖
छत्रपति संभाजी महाराज न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे अद्वितीय विद्वान भी थे।
✅ वे संस्कृत, मराठी, फारसी, ब्रजभाषा सहित कई भाषाओं में निपुण थे।
✅ मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने “बुद्धभूषणम” और “नक्-शिक-नायिका भेद” जैसे ग्रंथों की रचना की।
✅ उन्होंने अपने पिता से राजनीति, युद्धनीति और कूटनीति की शिक्षा ली।
लेकिन उनकी असली परीक्षा रणभूमि में होनी थी…
⚔️ सिंहासन की लड़ाई और संभाजी महाराज का राज्याभिषेक ⚔️
1680 में जब छत्रपति शिवाजी महाराज का स्वर्गवास हुआ, तब मराठा साम्राज्य में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया।
👉 उनकी सौतेली माता सोयराबाई ने अपने पुत्र राजाराम को सिंहासन पर बैठाने का षड्यंत्र रचा।
👉 कई मराठा सरदार भी उनके साथ थे, क्योंकि वे संभाजी महाराज के सख्त और स्पष्ट निर्णयों से असहज महसूस करते थे।
👉 लेकिन संभाजी महाराज ने अपने पराक्रम और नीतियों से इस षड्यंत्र को विफल कर दिया।
🚩 20 जुलाई 1680 को, रायगढ़ किले में विधिवत उनका राज्याभिषेक किया गया और वे छत्रपति बने।
छत्रपति संभाजी महाराज ने सिंहासन पर बैठते ही मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक अभियान छेड़ दिया।
🔥 औरंगज़ेब के खिलाफ युद्ध: हिंदवी स्वराज्य का संग्राम 🔥
औरंगज़ेब एक क्रूर और कट्टरवादी शासक था। उसकी नीतियाँ संपूर्ण भारत को इस्लामीकरण की ओर धकेल रही थीं। वह चाहता था कि हिंदुस्तान को एक इस्लामी सल्तनत में बदल दिया जाए।
लेकिन संभाजी महाराज इस षड्यंत्र को समझ चुके थे।
1681 में संभाजी महाराज ने औरंगज़ेब के खिलाफ निर्णायक युद्ध का बिगुल बजा दिया।
✅ उन्होंने मुगलों के प्रमुख व्यापारिक केंद्र बुरहानपुर पर आक्रमण कर उन्हें धूल चटा दी।
✅ उन्होंने मुगल शहजादे अकबर को अपने राज्य में शरण दी, जिससे औरंगज़ेब बौखला उठा।
✅ मराठा सेना ने रामसेज, कोकण, नासिक, पुणे सहित कई स्थानों पर मुगलों को करारी शिकस्त दी।
🔴 संभाजी महाराज की युद्धनीति इतनी अद्भुत थी कि औरंगज़ेब खुद मराठों से युद्ध करने के लिए दक्कन आ पहुंचा।
🚨 लेकिन इसी बीच एक गद्दार ने हमारे योद्धा के साथ विश्वासघात कर दिया…
💔 गद्दारी और संभाजी महाराज की गिरफ़्तारी 💔
फरवरी 1689 में, जब छत्रपति संभाजी महाराज संगमेश्वर में थे, तब गद्दार गणोजी शिर्के ने मुगलों को उनकी जानकारी दे दी।
👉 मुग़ल सेनापति मुकर्रम खान और दिलेर खान ने संभाजी महाराज को चारों ओर से घेर लिया।
👉 40,000 मुगल सैनिकों ने उन पर धावा बोला।
👉 संभाजी महाराज ने वीरता से लड़ाई लड़ी, लेकिन अंततः उन्हें बंदी बना लिया गया।
🚩 लेकिन मित्रों! असली परीक्षा तो अब शुरू होने वाली थी…
😡 संभाजी महाराज पर अमानवीय अत्याचार 😡
औरंगज़ेब ने उन्हें अपने दरबार में बुलाया और तीन शर्तें रखीं –
1️⃣ इस्लाम स्वीकार करो।
2️⃣ मराठा किले और खजाना सौंप दो।
3️⃣ मराठा साम्राज्य के सैन्य ठिकानों की जानकारी दो।
⚡ संभाजी महाराज ने गर्जना करते हुए कहा –
“अगर औरंगज़ेब अपनी बेटी भी मुझे दे दे, तब भी मैं इस्लाम स्वीकार नहीं करूंगा!”
🔥 बस फिर क्या था… औरंगज़ेब तिलमिला उठा और उन्हें अमानवीय यातनाएं देने का आदेश दिया!
👉 40 दिनों तक लगातार यातनाएं दी गईं!
👉 उनकी आँखों को जलती हुई लोहे की छड़ों से फोड़ दिया गया!
👉 उनकी जुबान काट दी गई!
👉 उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए!
🚩 लेकिन मित्रों! संभाजी महाराज की आत्मा नहीं झुकी! अंतिम सांस तक उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा की!
🚩 मराठा पुनर्जागरण और मुगलों का पतन 🚩
🔥 संभाजी महाराज की वीरगति के बाद मराठा साम्राज्य और भी अधिक शक्तिशाली हुआ।
🔥 उनकी शहादत ने पूरे भारत को एकजुट किया और मुगलों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा।
🔥 संभाजी महाराज की मृत्यु के मात्र 18 वर्षों बाद ही मुगल साम्राज्य का पतन हो गया!
🔥 औरंगज़ेब 27 वर्षों तक मराठों से लड़ते-लड़ते मर गया।
🚩 संभाजी महाराज का बलिदान व्यर्थ नहीं गया!
🔥 गर्व से कहो – जय संभाजी महाराज! 🔥
✅ इस लेख को अधिक से अधिक साझा करें।
✅ हर सनातनी तक यह संदेश पहुंचाएं।
✅ कमेंट में “🚩 जय संभाजी महाराज! 🚩” लिखें।
🚩 भारत माता की जय! जय श्रीराम! जय संभाजी महाराज! 🚩
Chhatrapati Sambhaji Maharaj: The Fearless Maratha Warrior
Chhatrapati Sambhaji Maharaj, the son of the legendary Chhatrapati Shivaji Maharaj, was one of the bravest and most resilient rulers in Indian history. Born on 14th May 1657, he inherited his father’s vision of Hindavi Swarajya and fought relentlessly against the Mughal Empire, Portuguese, and other foreign invaders. Despite facing numerous challenges, betrayals, and brutal torture, he never compromised on his principles and stood as a symbol of unwavering courage.
Early Life and Education
Sambhaji Maharaj was raised under the guidance of his grandmother Rajmata Jijabai and was trained in warfare, administration, and diplomacy from a young age. A scholar fluent in 13 languages, he was well-versed in Sanskrit, Persian, and Marathi. Despite being a fierce warrior, he was also a poet and authored Buddhabhushan, showcasing his literary prowess.
Chhatrapati of the Maratha Empire
After the demise of Chhatrapati Shivaji Maharaj in 1680, Sambhaji ascended the throne, facing opposition from within his kingdom. He proved his mettle by crushing internal rebellions and then directing his attention toward external threats.
His reign saw continuous battles against the Mughals, who were under Aurangzeb, the Portuguese, and the Siddis of Janjira. His attack on the Mughal stronghold of Burhanpur was legendary, as he looted the city and demonstrated the strength of the Marathas.
War Against Aurangzeb and Betrayal
Aurangzeb, determined to destroy the Maratha Empire, launched an extensive campaign against Sambhaji. The Maratha ruler fought fiercely for nine years, inflicting heavy losses on the Mughals. However, in 1689, due to betrayal by his own people, Sambhaji was captured by the Mughals.
Aurangzeb offered him two choices:
- Convert to Islam and serve the Mughal Empire.
- Face a brutal death.
True to his Maratha spirit, Sambhaji Maharaj refused to bow down. He not only rejected the offer but also insulted Aurangzeb and the Mughal dynasty, enraging the emperor.
Brutal Execution and Immortal Legacy
As a result of his defiance, Aurangzeb subjected him to inhumane torture for 40 days. His eyes were gouged out, his tongue was cut off, and his body was mutilated piece by piece. Yet, he did not surrender. Finally, on 11th March 1689, he was executed, but his sacrifice ignited an unbreakable fire within the Marathas.
Instead of fearing the Mughals, the Marathas rose with greater strength, eventually leading to the fall of the Mughal Empire and the rise of the Maratha Confederacy.
Why Chhatrapati Sambhaji Maharaj is a True Hero?
- He fought against Islamic tyranny and foreign invaders without fear.
- He was a scholar-warrior, equally proficient in sword and scripture.
- His unmatched resilience against the tortures of Aurangzeb remains unparalleled in history.
- His sacrifice united the Marathas, paving the way for a powerful empire.
Today, Chhatrapati Sambhaji Maharaj is not just a historical figure but a symbol of resistance, sacrifice, and Hindu pride. His legacy inspires millions to stand up against injustice and fight for righteousness.
🚩 जय भवानी! जय शिवाजी! जय संभाजी! 🚩