✍️ Sunil Chaudhari (Tandavacharya)
नमस्कार मित्रों,
आज मैं यह लेख किसी को बचाने के लिए नहीं लिख रहा,
न किसी को गिराने के लिए,
और न ही किसी ट्रेंड का हिस्सा बनने के लिए।
मैं यह लेख सच, संदर्भ और संतुलन के लिए लिख रहा हूँ।
सबसे पहले यह बिल्कुल साफ कर दूँ —
नीतीश कुमार जी ने जो किया, वह निंदनीय था।
हाँ, यह बात मैं लेख की शुरुआत में भी कह रहा हूँ,
और लेख के अंत में भी दोहराऊँगा।
लेकिन…
क्या यहीं बात खत्म हो जाती है?
या फिर यह घटना हमें एक बड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पाखंड की ओर इशारा करती है?
यही आज का विषय है।
घटना क्या है? – पहले तथ्य समझिए
बिहार में एक सरकारी कार्यक्रम आयोजित था।
आयुष विभाग के लगभग 650–700 डॉक्टरों को नियुक्ति प्रमाण-पत्र दिए जा रहे थे।
मंच पर उपस्थित थे:
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
- उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री सम्राट चौधरी
- वरिष्ठ अधिकारी
- मीडिया
एक महिला डॉक्टर, नुसरत परवीन, मंच पर आती हैं।
उन्होंने नक़ाब पहन रखा था।
यहाँ पहला भ्रम शुरू होता है।
हिजाब, नक़ाब और बुर्क़ा – अंतर समझना ज़रूरी है
- हिजाब: बाल ढके होते हैं, चेहरा पूरा दिखाई देता है
- नक़ाब: चेहरा ढका होता है, केवल आँखें दिखाई देती हैं
- बुर्क़ा: पूरा शरीर और चेहरा ढका होता है
👉 इस घटना में हिजाब नहीं, बल्कि नक़ाब था।
नीतीश कुमार जी ने सामने का कपड़ा नीचे किया।
यही क्षण कैमरे में कैद हुआ।
यहीं से देश दो हिस्सों में बँट गया।
दूसरी बड़ी घटना: प्रोटोकॉल टूटा कैसे?
इस पूरे मामले में एक बात बहुत कम लोगों ने नोटिस की।
सम्राट चौधरी जी, जो कि उप मुख्यमंत्री हैं,
उन्होंने पीछे से हाथ मारकर नीतीश कुमार जी को रोका।
मित्रों,
यह बहुत गंभीर बात है।
भारतीय प्रोटोकॉल में:
- जूनियर लीडर
- सीनियर मुख्यमंत्री को
- सार्वजनिक मंच पर
- हाथ से रोकता है
👉 यह अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रोटोकॉल उल्लंघन है।
लेकिन इस पर:
- न मीडिया चीखा
- न सोशल मीडिया उबला
- न सेकुलरिज़्म जागा
क्यों?
क्योंकि यहाँ एजेंडा कुछ और था।
अब ज़रा पीछे चलते हैं – अशोक गहलोत प्रकरण
जो लोग आज नीतीश कुमार जी को
“बदतमीज़”,
“महिला विरोधी”,
“तानाशाह”
कह रहे हैं —
क्या उन्होंने अशोक गहलोत जी का वीडियो देखा है?
जहाँ वे सार्वजनिक मंच पर कहते हैं:
“घूंघट निकालो… घूंघट का ज़माना गया”
और यह कहते हुए
राजस्थानी महिला का घूंघट हटाते हैं।
जब उनसे पूछा गया —
तो उन्होंने कहा:
“जो महिला शिक्षित होती है, वह घूंघट नहीं करती”
वाह।
👉 तब:
- कोई आंदोलन नहीं
- कोई ट्विटर ट्रेंड नहीं
- कोई प्राइम टाइम डिबेट नहीं
यही है दोहरे मापदंड।
असली सवाल: कौन सा नेता यह हिम्मत करेगा?
मैं आज खुले शब्दों में पूछता हूँ —
किस कांग्रेस नेता ने,
किस सपा नेता ने,
किस टीएमसी नेता ने,
किस आरजेडी नेता ने
👉 यह हिम्मत की है कि वह कह सके:
“बुर्क़ा और नक़ाब महिलाओं की प्रगति में बाधा हैं”
किसने?
किसी ने नहीं।
क्यों?
क्योंकि यहाँ सेकुलरिज़्म का मतलब है —
बहुसंख्यक को सुधार के नाम पर कोसना
और अल्पसंख्यक पर चुप्पी साध लेना।
सनातन दृष्टिकोण क्या कहता है?
अब मैं सनातन की बात करूँगा।
सनातन धर्म में:
- स्त्री को शक्ति कहा गया
- देवी कहा गया
- पूजनीय कहा गया
👉 घूंघट सनातन परंपरा नहीं है।
घूंघट आया:
- विदेशी आक्रांताओं के समय
- जब स्त्रियों की सुरक्षा के लिए
- सामाजिक मजबूरी बनी
यह धर्म नहीं,
यह इतिहास की त्रासदी थी।
लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट होनी चाहिए
यह लेख कहीं भी यह नहीं कहता कि:
- किसी महिला को क्या पहनना चाहिए
- किसी महिला को क्या नहीं पहनना चाहिए
❌ नहीं।
लेकिन…
जहाँ सरकारी प्रोटोकॉल हो:
- पहचान ज़रूरी है
- चेहरा दिखना ज़रूरी है
- प्रमाण-पत्र, डिग्री, नियुक्ति हो
👉 वहाँ:
- नक़ाब नहीं
- बुर्क़ा नहीं
- पूर्ण चेहरा ढकना स्वीकार्य नहीं
चाहे:
- हिंदू बहन हो
- सिख बहन हो
- ईसाई बहन हो
- मुस्लिम बहन हो
यह धर्म का मुद्दा नहीं,
यह प्रोटोकॉल का मुद्दा है।
गलती कहाँ हुई?
गलती दो स्तर पर हुई:
1️⃣ सरकार की गलती
कार्यक्रम से पहले स्पष्ट नहीं किया गया:
- मंच पर चेहरा दिखना अनिवार्य है
- नक़ाब स्वीकार्य नहीं
2️⃣ नीतीश कुमार जी की गलती
- उन्होंने मौखिक रूप से कह सकते थे
- अधिकारी को इशारा कर सकते थे
- स्वयं हाथ नहीं लगाना चाहिए था
👉 यह निंदनीय है।
मैं इसे गलत कहता हूँ।
लेकिन मीडिया की गलती?
मीडिया ने:
- नक़ाब को हिजाब बताया
- संदर्भ काट दिया
- सनसनी बेच दी
क्योंकि:
- TRP चाहिए
- क्लिप वायरल चाहिए
- सच्चाई नहीं
समाज को क्या सोचना चाहिए?
मित्रों,
हम एक खतरनाक दिशा में जा रहे हैं जहाँ:
- सोच बंद है
- ट्रेंड चालू है
- भीड़ सही है
याद रखिए —
भीड़ कभी सही नहीं होती।
समाधान क्या है?
भारत को चाहिए:
- स्पष्ट सरकारी प्रोटोकॉल
- सभी धर्मों पर समान नियम
- भावनाओं से नहीं, संविधान से निर्णय
जहाँ:
- निजी जीवन में पूर्ण स्वतंत्रता
- लेकिन सरकारी मंच पर समान नियम
अंतिम निष्कर्ष
मैं दो बातें स्पष्ट शब्दों में कहता हूँ:
1️⃣ नीतीश कुमार जी का तरीका गलत था
2️⃣ अशोक गहलोत जी का तरीका भी गलत था
लेकिन…
जो लोग आज चिल्ला रहे हैं,
वे कल चुप थे।
और यही सबसे बड़ा पाखंड है।
अंतिम शब्द
यह देश:
- भावनाओं से नहीं
- नारे से नहीं
- ट्रेंड से नहीं
👉 विवेक से चलेगा।
सोचिए।
समझिए।
और फिर बोलिए।
जय सनातन
वंदे मातरम् 🇮🇳
—
✍️ Sunil Chaudhari
Tandavacharya










