शादी के घर का माहौल हमेशा खास होता है। हर कोने में हंसी-खुशी, गाने-वाद्य, और रिश्तेदारों की मस्ती चल रही थी। ये मेरी भांजी की शादी थी, और शादी में जिम्मेदारियों के चलते मुझे किसी और चीज़ का ध्यान ही नहीं था। लेकिन मामी की बेटी सोनल का मेरे आसपास रहना, मेरी हर छोटी-बड़ी बात पर ध्यान देना, और उसकी खामोशी में छुपे कुछ अनकहे शब्द मुझे महसूस होने लगे थे। कभी मैं उसे नज़रअंदाज़ करता, तो कभी उसकी बातों में खो जाता।
शादी के दिन, जैसे ही हल्दी की रस्म का समय आया, सोनल ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली, “भैया, आज मैं आपका सारा काम खुद देखूंगी। आप बस आराम करिए।” उसके शब्दों में न सिर्फ स्नेह था, बल्कि एक विशेष नज़दीकी भी, जिसे मैंने महसूस तो किया, पर समझने का बहाना करके वहाँ से निकल गया।
पहली मुलाकात
वो रात बहुत यादगार थी। हल्दी की रस्म खत्म होने के बाद सब लोग थक चुके थे। मैं किसी काम से आँगन में गया और देखा कि सोनल अकेली बैठी थी। उसकी आँखों में उदासी और एक उम्मीद का मिश्रण था। मैं पास गया और उससे पूछा, “क्या हुआ सोनल? आज इतनी चुप क्यों हो?”
उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, “भैया, क्या आपको लगता है कि कुछ रिश्ते कभी पूरे नहीं हो सकते? चाहे वो कितना भी गहरा क्यों न हो?”
मेरा मन अजीब से विचारों में घिर गया। मैंने उसकी बात को समझने की कोशिश की, पर कुछ समझ नहीं पाया। सोनल का मुझसे कुछ और कहना चाहती थी, उसकी खामोशियाँ, उसकी नजरें सब कुछ बयां कर रही थीं, पर मैं उसे लेकर खुद उलझन में था।
गहरी बातों का सिलसिला
अगले दिन शादी की तैयारियाँ चल रहीं थीं। रात में फेरों का समय था। सोनल मेरे पास आई और उसने धीरे से कहा, “आज मेरे साथ थोड़ी देर बैठोगे?”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, तेरे साथ बैठने के लिए मुझसे कहने की क्या जरूरत है?”
हम दोनों छत पर जाकर बैठ गए। चारों ओर की हल्की रोशनी, और रात की ताजगी माहौल को बेहद खूबसूरत बना रही थी। सोनल ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “कभी-कभी दिल में बहुत सी बातें होती हैं, पर उन्हें कहने का सही समय नहीं होता। एक दिन वो बातें रह जाती हैं, पर एहसास जिंदा रहते हैं।”
उसकी बातों ने मुझे और उलझा दिया। मेरे दिल में हलचल होने लगी थी। मैंने उससे कहा, “तुम कुछ कहना चाहती हो सोनल?”
वो चुप हो गई, उसकी आँखें मुझे देखकर बोलीं, पर जुबान खामोश रही। मैं उसे कुछ कहना चाहता था, पर मेरे पास शब्द नहीं थे। एक अजीब सी बेचैनी थी, जो न मुझे चैन से बैठने दे रही थी, न उसे।
विदाई के पल
शादी की सारी रस्में खत्म हो चुकी थीं। मेरी भांजी विदा हो रही थी और घर में सभी के चेहरे पर उदासी का रंग छा गया था। सबने अपने-अपने आँसू रोकने की कोशिश की, लेकिन सोनल की आँखों में कुछ खास था। उसकी उदासी सिर्फ विदाई की नहीं थी; उसके दिल में कोई अनकहा दर्द भी छुपा था।
शादी के बाद का दिन बेहद खामोशी भरा था। सोनल ने मुझसे कहा, “भैया, आपको ऐसा नहीं लगता कि अब हम एक नई शुरुआत कर सकते हैं?”
उसका सवाल मेरे दिल की धड़कनों को बढ़ा गया। मैं उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था। मेरे मन में भी एक अनकहा ख्याल था, लेकिन मैं ये समझ नहीं पा रहा था कि क्या वही सही था।
भावनाओं का इजहार
आखिरकार, एक दिन मैंने हिम्मत की और सोनल के पास जाकर उससे बात करने का फैसला किया। मैं उसके पास गया और बोला, “सोनल, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है? मुझे भी समझने में वक्त लग रहा है।”
उसने धीरे से कहा, “भैया, कभी-कभी हमारा दिल उन लोगों से जुड़ जाता है, जिनसे हमें खुद ही अलग होना पड़ता है। लेकिन मैं आपके बिना ये जीवन अधूरा सा महसूस करती हूँ।”
उसके ये शब्द मेरे दिल की गहराइयों में उतर गए। मुझे समझ में आ गया कि हमारे बीच की ये नज़दीकियाँ एक खूबसूरत एहसास की शुरुआत थीं।
कहानी का समापन
इस बातचीत के बाद, हमने एक-दूसरे के लिए अपने दिल के सारे राज खोल दिए। वो दिन हमारे लिए एक नई शुरुआत थी। हमने अपने परिवारों से बात की, और आखिरकार एक साल बाद हमने शादी कर ली।
सोनल की वो खामोशियाँ, उसकी छोटी-छोटी नज़दीकियाँ और उसके अनकहे शब्द अब मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुके थे।