“बीरबल और सोने का घड़ा”
कहानी:
एक दिन अकबर के दरबार में एक गरीब आदमी आया और बोला, “जहाँपनाह, मैंने सुना है कि आप बहुत दयालु और न्यायप्रिय राजा हैं। मुझे आपके दरबार से न्याय चाहिए।”
अकबर ने उससे पूछा, “क्या समस्या है?”
उसने कहा, “मैंने अपने घर के पिछवाड़े में खुदाई की और एक सोने का घड़ा पाया। मैंने सोचा कि यह मेरी किस्मत का फल है। लेकिन मेरे पड़ोसी ने दावा किया कि वह घड़ा उसका है क्योंकि खुदाई वाली ज़मीन उसकी है। अब हम दोनों इस बात पर लड़ रहे हैं।”
अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा, “बीरबल, तुम इस समस्या का समाधान करो।”
कहानी:
बीरबल ने दोनों व्यक्तियों से कहा, “ठीक है, हम इस घड़े का निपटारा करेंगे। लेकिन उससे पहले मुझे यह देखना होगा कि यह घड़ा कितना कीमती है।”
बीरबल ने घड़े को देखा और फिर कुछ सोचकर बोला, “इस घड़े की कीमत तो बहुत अधिक है, लेकिन असल में सबसे बड़ा इनाम वह मेहनत है जो तुमने इसे पाने के लिए की है।”
फिर बीरबल ने उस गरीब आदमी से पूछा, “तुमने खुदाई क्यों की थी?”
आदमी ने जवाब दिया, “मैं अपने घर के लिए एक छोटा कुआँ खोद रहा था ताकि पानी मिल सके।”
बीरबल ने पड़ोसी से पूछा, “तुमने इस घड़े के लिए क्या किया?”
पड़ोसी ने कहा, “मैंने कुछ नहीं किया, बस खुदाई का काम इसी की ज़मीन पर हो रहा था।”
बीरबल ने कहा, “जहाँपनाह, यह घड़ा उस व्यक्ति का है जिसने मेहनत की। जो सिर्फ अपनी किस्मत पर भरोसा करते हैं, उन्हें कुछ नहीं मिलता। मेहनत का फल ही असली इनाम है।”
अकबर ने बीरबल की बुद्धिमानी की तारीफ की और उस गरीब आदमी को घड़ा सौंप दिया।
मोरल:
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है और मेहनत करने वाला ही असली हकदार होता है। किस्मत से ज्यादा मेहनत का महत्व है।
इस प्रकार, बीरबल ने अपनी समझदारी से अकबर और दरबारियों को सिखाया कि असली इनाम मेहनत का है, न कि केवल भाग्य का।