SBI कभी भी चुनावी बॉन्ड दाताओं को पार्टियों से मेल नहीं कर सकता: पूर्व वित्त सचिव
एक पूर्व वित्त सचिव ने कहा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (एसबीआई) कभी भी चुनावी बॉन्ड दाताओं को राजनीतिक पार्टियों से मिलाने में सक्षम नहीं हो सकता है। इसका बयान उनके व्यक्तिगत अनुभवों और ज्ञान के आधार पर किया गया है।
पूर्व वित्त सचिव ने बताया कि एसबीआई को चुनावी बॉन्डों के दाताओं का नाम या पार्टी के साथ किया गया संबंध कभी भी पता नहीं चल सकता है। वह इस बिंदु पर खुलकर बात करते हुए कहते हैं कि यह तकनीकी और कानूनी कठिनाईयों के कारण होता है।
उन्होंने कहा, “एसबीआई कभी भी चुनावी बॉन्डों के दाताओं का नाम या पार्टी के साथ किया गया संबंध नहीं बता सकता है। यह कानूनी और तकनीकी मुद्दे हैं।”
चुनावी बॉन्ड एक ऐसी वित्तीय योजना है जिसमें राजनीतिक दलों को निजी दाताओं से धनराशि प्राप्त करने की सुविधा प्रदान की जाती है। यह योजना भारतीय रिज़र्व बैंक के अधीन चलती है।
इस बयान के बाद राजनीतिक दलों के बीच उठ रहे सवालों के संबंध में कुछ चिंगारी भी बढ़ चुकी है। अन्य विपक्षी दल इसे एक और राजनीतिक विवाद का मुद्दा बना रहे हैं और इसे सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
चुनावी बॉन्डों को लेकर समीक्षा के बाद कई विपक्षी दलों ने इसे नाराजगी और चिंता का कारण बताया है। वे इसे एक चुनावी फंडिंग के तरीके के रूप में देख रहे हैं जो लोकतंत्र को खतरे में डाल सकता है।
चुनावी बॉन्डों की विवादित स्थिति में, सरकार के एक प्रमुख अधिकारी ने भी इसे स्वीकार किया है कि यह एक तकनीकी और कानूनी मुद्दा है और इसे सुलझाने के लिए उचित प्रक्रियाएं अपनाई जा रही हैं।
चुनावी बॉन्डों के बारे में विवाद समाप्त करने के लिए, सरकार को और अधिक संवेदनशील और पारदर्शी होने की जरूरत है, जिससे लोकतंत्र की भरोसेमंदता को हानि न हो।