भारतीय लोकतंत्र में चुनाव केवल मतदान की प्रक्रिया नहीं है।
चुनाव लोकतंत्र की आत्मा होते हैं।
और जब इस आत्मा पर सवाल उठते हैं, तब जवाब भी इतिहास, तथ्यों और रिकॉर्ड से ही दिए जाने चाहिए।
लोकसभा में हाल ही में निशिकांत दुबे का भाषण
कोई भावनात्मक बहस नहीं था,
बल्कि यह चुनाव सुधार, SIR (Special Intensive Revision), EVM और कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका पर एक डॉक्यूमेंटेड चार्जशीटथी।
इस लेख में हम समझेंगे:
- SIR क्या है
- कांग्रेस SIR और EVM का विरोध क्यों करती है
- क्या चुनाव आयोग कभी पूरी तरह “निष्पक्ष” रहा है
- और निशिकांत दुबे ने किन ऐतिहासिक तथ्यों से राहुल गांधी और कांग्रेस के दावों को चुनौती दी
1. चुनाव आयोग पर सवाल: क्या यह नया मुद्दा है?
कांग्रेस और राहुल गांधी आज चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं।
लेकिन सवाल यह है—
क्या यह पहली बार है?
निशिकांत दुबे ने संसद में साफ़ कहा कि
आज जिन संस्थाओं की “स्वायत्तता” की दुहाई दी जा रही है,
उन्हीं संस्थाओं को दशकों तक राजनीतिक नियुक्तियों का अड्डा बनाया गया।
उदाहरण:
- सुकुमार सेन (पहले चुनाव आयुक्त) → रिटायरमेंट के बाद सूडान के गवर्नर
- वी.एस. रामादेवी → रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल
- टी.एन. शेषन → बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार
- एम.एस. गिल → रिटायरमेंट के बाद केंद्र सरकार में मंत्री
सवाल सीधा है—
अगर ये नियुक्तियाँ “निष्पक्ष” थीं,
तो आज के चुनाव आयोग पर सवाल किस आधार पर?
2. CBI, IB और संस्थाओं का राजनीतिक उपयोग
निशिकांत दुबे ने केवल चुनाव आयोग की बात नहीं की।
उन्होंने CBI और IB जैसे संवेदनशील संस्थानों का भी ज़िक्र किया।
उन्होंने बताया कि कैसे:
- सोनिया–राहुल के करीबी अधिकारी CBI डायरेक्टर बने
- अहमद पटेल से जुड़े अधिकारी शीर्ष पदों पर पहुंचे
यह सवाल उठता है:
👉 जब दशकों तक संस्थाओं का राजनीतिक उपयोग हुआ,
तो आज अचानक नैतिकता की याद क्यों?
3. RSS पर गर्व और विचारधारा की स्पष्टता
निशिकांत दुबे ने संसद में खुलकर कहा—
“हां, हम RSS के हैं। और हमें इस पर गर्व है।”
यह बयान केवल संगठन का नहीं था।
यह विचारधारा की स्पष्टता थी।
उन्होंने कहा:
- RSS का आधार बलिदान है
- शहीदों का ऋण चुकाने की भावना है
- राष्ट्र सर्वोपरि है
यहाँ तुलना साफ़ थी—
एक तरफ स्पष्ट राष्ट्रवादी विचार,
दूसरी तरफ सत्ता-आधारित राजनीति।
4. SIR क्या है और इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी?
SIR यानी Special Intensive Revision
मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण।
यह प्रक्रिया:
- फर्जी वोटरों को हटाने
- मृत व्यक्तियों के नाम हटाने
- एक ही व्यक्ति के कई जगह वोट रोकने
- अवैध प्रवासियों को रोकने
के लिए की जाती है।
निशिकांत दुबे ने स्पष्ट कहा—
“SIR किसी पार्टी के खिलाफ नहीं,
बल्कि लोकतंत्र की शुद्धता के लिए है।”
5. 1980 का बिहार चुनाव: जब बैलेट बॉक्स लूटे गए
निशिकांत दुबे ने संसद में 1980 के बिहार चुनाव का रिकॉर्ड रखा।
तथ्य:
- 324 विधानसभा सीटें
- 81 सीटों पर चुनाव रद्द
- कई जगह बैलेट बॉक्स लूटे गए
- SC, ST, OBC वोटरों को मतदान से रोका गया
यह सब कांग्रेस शासन में हुआ।
यही कारण था कि:
- चुनाव सुधार की मांग उठी
- SIR की आवश्यकता समझी गई
6. EVM किसने लाई? सच बनाम प्रचार
आज कांग्रेस EVM का विरोध करती है।
लेकिन इतिहास क्या कहता है?
निशिकांत दुबे ने रिकॉर्ड के साथ बताया:
- 1987: राजीव गांधी ने EVM को पायलट प्रोजेक्ट में लाया
- 1991: नरसिम्हा राव सरकार ने इसे आगे बढ़ाया
- 1961 और 1971 की संसदीय समितियों ने EVM की सिफारिश की
यानि—
👉 EVM कांग्रेस की ही देन है।
आज उसी EVM को “खराब” कहना
इतिहास से भागने जैसा है।
7. बूथ-वाइज काउंटिंग का विरोध क्यों?
पहले चुनावों में:
- बूथ-वाइज काउंटिंग नहीं होती थी
- सभी वोट मिला दिए जाते थे
क्यों?
तर्क दिया गया:
“अगर बूथ-वाइज काउंटिंग होगी
तो गुंडे मतदाताओं को डराएंगे।”
असलियत:
- बूथ-वाइज काउंटिंग से रिगिंग पकड़ी जाती
- इसलिए इसका विरोध किया गया
यह बात अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने उठाई थी।
8. वोटर डिलीशन के आंकड़े: किसे फायदा हुआ?
निशिकांत दुबे ने बिहार और महाराष्ट्र के उदाहरण दिए।
दिलचस्प तथ्य:
- जहाँ वोट डिलीट हुए, वहाँ कई जगह कांग्रेस और RJD जीती
- जहाँ वोट बढ़े, वहाँ NDA को फायदा हुआ
यह दिखाता है कि:
👉 SIR किसी एक पार्टी को फायदा नहीं देता
👉 यह सिर्फ़ फर्जी वोट रोकता है
9. 70 साल बाद वोटर बनने वाला व्यक्ति: सवाल ज़रूरी है
एक उदाहरण दिया गया—
70 साल का व्यक्ति,
जो कभी वोटर नहीं रहा,
अचानक नाम जुड़वाना चाहता है।
सवाल स्वाभाविक है:
- 18 साल की उम्र से 70 तक आपने वोट क्यों नहीं दिया?
- क्या यह फर्जी पहचान का मामला है?
अगर ऐसे सवाल पूछना गलत है,
तो लोकतंत्र सुरक्षित कैसे रहेगा?
10. जनसंख्या, घुसपैठ और SIR का विरोध
निशिकांत दुबे ने जनगणना के आँकड़ों का ज़िक्र किया—
- झारखंड में आदिवासी आबादी घटती गई
- सीमावर्ती इलाकों में जनसंख्या असामान्य रूप से बढ़ी
उन्होंने दावा किया कि:
- अवैध घुसपैठ
- फर्जी वोट
- और तुष्टिकरण की राजनीति
SIR के विरोध की असली वजह हैं।
11. असली सवाल: चुनाव सुधार या वोट बैंक?
पूरा भाषण एक ही सवाल पर केंद्रित था—
👉 क्या हम साफ़ चुनाव चाहते हैं
या सुविधाजनक चुनाव?
- अगर चुनाव सुधार हो, तो कुछ फर्जी वोट हटेंगे
- अगर फर्जी वोट हटेंगे, तो कुछ दलों को नुकसान होगा
यही कारण है कि:
- SIR का विरोध
- EVM पर सवाल
- चुनाव आयोग पर हमले
एक साथ दिखाई देते हैं।
निष्कर्ष: लोकतंत्र भावनाओं से नहीं, तथ्यों से चलता है
निशिकांत दुबे का भाषण
किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं था।
यह रिकॉर्ड के आधार पर लोकतंत्र की सफाई का पक्ष था।
लोकतंत्र बचाने के लिए:
- चुनाव आयोग मजबूत होना चाहिए
- मतदाता सूची शुद्ध होनी चाहिए
- भावनात्मक भाषण नहीं, तथ्य बोलने चाहिए
अगर SIR से फर्जी वोट हटते हैं,
तो यह देश के ईमानदार मतदाता की जीत है।
लोकतंत्र में सबसे बड़ा अधिकार वोट है,
और सबसे बड़ा अपराध उस वोट को गंदा करना।










