व्यंग्य की वीणा छेड़े, कहूँ एक कथा अनूठी,
मोदी जी तो ऐसे तानाशाह, सभा में विरोधी बूठी।
विरोध में पत्रकार, लिखते अखबारों में आलाप,
मोदी जी के राज में, यह भी है एक विरोध का स्वरूप।
राहुल गांधी न्याय यात्रा पर, धरते नई भूमिका,
व्यंग्य कहे, तानाशाही में, कैसे यह संभविका?
शाहजहाँ शेख पर केस, बुलडोजर नहीं सीधा,
कैसे कहें तानाशाह, जब न्याय की राह पीठा?
ओवैसी जैसे, मुसलमानों को रात-दिन भड़काए,
मोदी जी चुप, व्यंग्य कहे, यह कैसा तानाशाही राज छाए?
कैसे तानाशाह हैं मोदी जी, व्यंग्य यह तो बताए,
बुरे या अच्छे, तानाशाह का मुखौटा, कौन सही में पाए?
आपको क्या लगता है, इस व्यंग्य में सत्य कितना?
मोदी जी की तानाशाही, या विरोध का स्वर अनूठा
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बैठा हूँ मैं व्यंग्य की चौपाल पे, सुनाने चला एक व्यथा,
मोदी जी तानाशाह? अरे! विरोधी भी तो हैं मस्ती में मत्ता।
पत्रकार लिखें खबरें, जैसे तीर चलाएँ अर्जुन सा,
मोदी जी के राज में, क्या ये नहीं है विरोध का फन सा?
राहुल जी न्याय यात्रा पे, जैसे भ्रमण करें विश्व यात्री,
मुस्कुराता हूँ सोच, व्यंग्य भी बन गया राजनीति की मात्री।
शेख साहब पर केस, बिना बुलडोज़र के, ये कैसी बात?
लगता है तानाशाही में भी, कहीं न कहीं है न्याय की आवाज़।
ओवैसी जी की बातें, जैसे चिंगारी में घी,
मोदी जी चुप? अरे! व्यंग्य में ही सही, बहस का मज़ा ले लीजिए।
कैसे तानाशाह हैं मोदी जी, ये व्यंग्य मुस्कान बिखेरे,
विरोध में भी प्यार है, कहीं न कहीं ये दिल से उभरे।
आओ बैठें, बातें करें, इस व्यंग्य की मिठास में,
मोदी जी तानाशाह, या विरोध का संगीत इस राजनीति के रास में?
आपकी क्या राय है, इस व्यंग्य की राह में?
सच की तलाश में, चलें इस राजनीतिक व्यंग्य के साथ में।