भूमिका
आज जब हम डिजिटल इंडिया, एक भारत श्रेष्ठ भारत, और अमृतकाल जैसे नारों की बात करते हैं, तो क्या यह विचारधारा वास्तव में ज़मीन पर दिखती है? या फिर भाषाई भेदभाव और राजनीति के घमंड में हम भारतीयता की आत्मा को ही कुचल रहे हैं? महाराष्ट्र में हिंदी भाषी लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और अजीबोगरीब मांग—”मराठी बोलो या मारे जाओ”—एक अत्यंत चिंताजनक स्थिति को उजागर करती है।
यह लेख केवल एक वीडियो या घटना का विश्लेषण नहीं है, बल्कि उस पूरे नैरेटिव की पड़ताल करता है जो भाषा, राजनीति, रोजगार, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक द्वेष से जुड़ा हुआ है।
1. आम लोगों को पीटना: किस भारत की तस्वीर है ये?
आज के भारत में, जहां एक शिक्षक किसी छात्र को अनुशासित करने के लिए हाथ नहीं उठा सकता, वहीं एक मेहनती मज़दूर, एक गरीब पिता, जिसे केवल इसलिए पीटा गया क्योंकि वह मराठी नहीं बोल पाया, क्या यह भारत के मूलभूत संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है? कैमरे पर थप्पड़, जलील करना, और जबरदस्ती माफी मंगवाना – क्या यही वो सभ्य समाज है जिसकी कल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने की थी?
2. बॉलीवुड और मराठी: एकतरफा रिश्ता?
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री—जिसने मुंबई और महाराष्ट्र को विश्व स्तरीय पहचान दी, जिसने अरबों रुपए का टैक्स दिया, लाखों लोगों को रोज़गार दिया—उसी की भाषा को महाराष्ट्र में अपमानित किया जा रहा है। सवाल उठता है:
- क्यों नहीं डब होती बड़ी फिल्में मराठी में?
- क्यों बॉलीवुड मराठी में फिल्में नहीं बनाता?
- अगर हिंदी से इतनी नफरत है तो क्यों नहीं फिल्म इंडस्ट्री को उत्तर प्रदेश, बिहार या मध्यप्रदेश ले जाया जाए?
3. छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदीव़ी साम्राज्य
क्या आज की राजनीति इतिहास को तोड़-मरोड़ कर अपने एजेंडा के हिसाब से नहीं परोस रही? शिवाजी महाराज ने हिंदू स्वराज्य की बात की थी, न कि केवल मराठी राज्य की। लेकिन आज कुछ नेता शिवाजी को केवल मराठी अस्मिता तक सीमित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह उनके महान त्याग और विजन का अपमान है।
4. हिंदी के प्रति नफरत: एक सुनियोजित षड्यंत्र
महाराष्ट्र की राजनीति में हिंदी विरोध अब एक फैशन बन चुका है। देवेंद्र फडणवीस तक ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में नकार दिया। ठाकरे गुट इसे अपनी जीत बता रहा है। लेकिन ये सवाल कोई नहीं पूछता कि अगर हिंदी को नकार देंगे, तो मुंबई में पल रही इंडस्ट्री कैसे बचेगी?
5. हिंसा और बेइज़्ज़ती: गरीबों पर अत्याचार
जो लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, जो मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालते हैं, उन्हीं पर सबसे ज्यादा अत्याचार क्यों? सिर्फ इसलिए कि वे हिंदीभाषी हैं? क्या ये वही महाराष्ट्र नहीं है जहां अंबानी, अडानी, बॉलीवुड स्टार्स मराठी नहीं बोलते, लेकिन उन्हें कोई कुछ नहीं कहता? गरीब हिंदीभाषी पर ही सारा गुस्सा क्यों?
6. मुस्लिम मोहल्लों में मराठी माफ़ी नहीं, हिंदी माफ़ी!
जब एक युवक गलती से मुस्लिम मोहल्ले में जाकर “मराठी बोलो” कहता है, तो उसे इतनी बुरी तरह पीटा जाता है कि अंत में माफी हिंदी में मांगनी पड़ती है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार से हिन्दू हिंदीभाषियों को ही दोहरा मापदंड झेलना पड़ता है—एक तरफ राजनैतिक उपेक्षा और दूसरी तरफ सांप्रदायिक अत्याचार।
7. यूपी-बिहार में हिंदी अपमान नहीं, सम्मान है
अगर यही हिंदीभाषी लोग यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, हिमाचल जाएं तो वहां उन्हें न अपमानित किया जाएगा, न पीटा जाएगा, न वीडियो वायरल किए जाएंगे। तब वो स्वाभिमान से सिर उठाकर काम कर सकते हैं। यही वह स्वाभिमान है जो महाराष्ट्र में लातों से कुचला जा रहा है।
8. दाऊद का गढ़: मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की असलियत
मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री, जो कभी गौरवशाली हुआ करती थी, आज एक कराचीवुड में बदलती जा रही है। वहां हिंदुओं के खिलाफ फिल्में बन रही हैं। जानकी वर्सेस स्टेट ऑफ केरला जैसी फिल्में आ रही हैं जो सीता मां के नाम पर बनी महिला के रेप और उसके बाद के घटनाक्रम को इस प्रकार दिखाती हैं जैसे हिंदू ही दोषी हों और मुसलमान व ईसाई ही उसके रक्षक।
9. सेंसर बोर्ड और हिंदू समाज की चुप्पी
जब ऐसी फिल्में पास हो जाती हैं और पूरे समाज को बदनाम करती हैं, तब ना कोई सेंसर बोर्ड आवाज़ उठाता है, ना कोई राजनीतिक दल। हम सब मंदिर बनने से खुश हो जाते हैं, लेकिन जो चलचित्रों के माध्यम से हमारी पीढ़ियों की सोच बदली जा रही है, उस पर कोई ध्यान नहीं देता।
10. क्या करना चाहिए?
- हिंदी भाषी राज्यों को एकजुट होना चाहिए।
- फिल्म इंडस्ट्री को यूपी जैसे हिंदी राज्यों में स्थानांतरित करना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट को ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।
- सरकार को भाषा के नाम पर हो रही हिंसा पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
- जनता को जागरूक होकर इन मुद्दों पर आवाज़ उठानी चाहिए।
निष्कर्ष
भारत विविधताओं का देश है, और भाषा इस विविधता की शक्ति है, न कि कमजोरी। अगर एक राज्य में हिंदीभाषियों को अपमानित किया जाता है, तो यह केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष के संविधान, संस्कृति और एकता का अपमान है।
अब समय आ गया है कि हम सिर्फ मंदिर निर्माण पर गर्व न करें, बल्कि अपनी संस्कृति, भाषा और धर्म पर होने वाले षड्यंत्रों को पहचानें और उनका सामना करें।
जय श्रीराम। जय सनातन। वंदे मातरम्।