भारत में कानून की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए यह एक सपना होता है कि वे एक सफल वकील बनें, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वकीलों की असल ज़िन्दगी कैसी होती है? देश की नौवीं सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा CLAT (Common Law Admission Test) को पास करने के बाद, पाँच साल की डिग्री, डजन भर किताबें, कम से कम 10 लाख रुपये की फीस देने के बावजूद भी कई वकीलों को ऑटो चलाना, सब्ज़ी बेचना, डिलीवरी करना और यहाँ तक कि सड़क पर पराठे बेचने तक की नौबत आ जाती है।
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यह कोई अपवाद नहीं है बल्कि एक कड़वी सच्चाई है जिसे अनदेखा करना मुश्किल है। अगर आप भी लॉयर बनने की सोच रहे हैं, तो इस प्रोफेशन की हाईज के साथ-साथ लोज़ भी समझना ज़रूरी है।
भारत में वकीलों की आय: क्या है वास्तविकता?
1. शुरुआती कमाई लगभग शून्य
एक जूनियर वकील अगर हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू करता है, तो उसे आमतौर पर 10,000 से 15,000 रुपये महीना ही मिलते हैं। कई मामलों में यह रकम 0 रुपये तक होती है।
राजीव दुबे, जो कि दिल्ली के एक प्रसिद्ध एडवोकेट और लेखक हैं, बताते हैं कि भारत में लाखों वकील बेरोजगार हैं। एक सर्वे के अनुसार, 79% भारतीय वकील 5000 रुपये से भी कम कमा रहे हैं।
2. पिता-चाचा की वकालत में होने से बढ़ती हैं संभावनाएँ
जो वकील पारिवारिक लीगल बैकग्राउंड से आते हैं, उन्हें शुरुआती नेटवर्क और गाइडेंस मिल जाता है, जिससे उनका करियर अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। लेकिन पहली पीढ़ी के वकीलों के लिए यह सफर कठिन होता है।
3. कॉर्पोरेट वकील बनना अधिक लाभदायक
अगर कोई कॉर्पोरेट लॉ फर्म में वकील बन जाता है, तो उसकी शुरुआती सैलरी 12 LPA (लाख प्रति वर्ष) होती है। लेकिन समस्या यह है कि बड़ी कॉर्पोरेट फर्म्स केवल NLU (National Law Universities) के टॉप ग्रेजुएट्स को ही भर्ती करती हैं।
देश के 1390 लॉ कॉलेजों में से केवल कुछ ही टॉप कॉलेजों के छात्रों को कॉर्पोरेट सेक्टर में प्रवेश मिलता है। आम कॉलेज से निकले वकीलों के लिए यह अवसर बहुत सीमित होते हैं।
4. लिटिगेशन प्रैक्टिस: बिना पैसा लिए काम करने की मजबूरी
ज्यादातर लॉ ग्रेजुएट्स को लिटिगेशन प्रैक्टिस करनी पड़ती है, जिसमें उन्हें सुनिश्चित आय नहीं होती। शुरुआत में जूनियर एडवोकेट्स अपने सीनियर एडवोकेट्स के अधीन काम करते हैं, लेकिन 80% सीनियर एडवोकेट्स उन्हें कोई सैलरी नहीं देते।
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, हाई कोर्ट्स में जूनियर एडवोकेट्स को पहले 2 सालों तक 5000-8000 रुपये महीना ही मिलता है।
एक लॉयर बनने की पूरी प्रक्रिया: कितनी लंबी और कठिन?
1. 12वीं के बाद प्रवेश परीक्षा
- छात्र CLAT या स्टेट लेवल एग्जाम (जैसे MH-CET) के लिए तैयारी करते हैं।
- तैयारी के लिए कोचिंग क्लासेस की फीस 1 लाख रुपये से अधिक होती है।
- तैयारी में कम से कम 1-2 साल का समय लगता है।
2. लॉ कॉलेज की फीस और डिग्री
- NLU में दाखिले के लिए सालाना 3.75 लाख रुपये फीस देनी पड़ती है।
- एक निजी लॉ कॉलेज में भी 4-5 लाख रुपये का खर्च आता है।
- डिग्री पूरी करने में 3 से 5 साल लगते हैं।
3. ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE)
- डिग्री के बाद AIBE परीक्षा पास करनी होती है, तभी कोर्ट में प्रैक्टिस करने की अनुमति मिलती है।
- परीक्षा पास करने के बाद ही वकील को एडवोकेट का दर्जा मिलता है।
4. 2 साल तक सेशन कोर्ट में अनुभव
- वकील को हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने से पहले 2 साल तक जिला अदालतों में प्रैक्टिस करना अनिवार्य होता है।
- हाई कोर्ट में जाने के लिए एक सीनियर एडवोकेट की सिफारिश ज़रूरी होती है।
5. हाई कोर्ट एडवोकेट बनने के बाद
- 8-10 साल के अनुभव के बाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू होती है।
- हाई कोर्ट एडवोकेट्स आमतौर पर 50,000 – 1.2 लाख रुपये प्रति महीना कमा सकते हैं।
6. सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट बनने के लिए
- 2 साल हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करनी होती है।
- सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) परीक्षा पास करनी होती है।
- भारत में सिर्फ 2700 वकील ही सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर सकते हैं।
7. टॉप वकीलों की कमाई
- सुप्रीम कोर्ट के कुछ टॉप एडवोकेट्स 1 अपीयरेंस के लिए 10-50 लाख रुपये तक चार्ज करते हैं।
- राम जेठमलानी, हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल जैसे वकील करोड़ों रुपये की फीस लेते हैं।
भारतीय वकीलों की दयनीय स्थिति: बदलाव की जरूरत
1. जूनियर एडवोकेट्स के लिए न्यूनतम वेतन सुनिश्चित हो
भारत में जूनियर एडवोकेट्स के लिए कोई न्यूनतम वेतन कानून नहीं है, जिससे उनका शोषण होता है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
2. गैर-NLU लॉ ग्रेजुएट्स के लिए बेहतर अवसर
कॉरपोरेट सेक्टर को चाहिए कि वे सिर्फ NLU छात्रों तक सीमित न रहें और अन्य प्रतिभाशाली छात्रों को भी मौका दें।
3. कानूनी शिक्षा को अधिक व्यावहारिक बनाया जाए
भारत के अधिकांश लॉ कॉलेज सिर्फ किताबी ज्ञान देते हैं, जबकि कोर्ट में अनुभव सबसे ज़रूरी होता है। शिक्षा प्रणाली को और व्यावहारिक बनाना चाहिए।
निष्कर्ष: क्या वकालत का करियर चुनना सही है?
अगर आप लॉयर बनने का सपना देख रहे हैं, तो आपको यह समझना होगा कि इस क्षेत्र में सफलता जल्दी नहीं मिलती। 12-15 साल की मेहनतके बाद ही एक वकील आर्थिक रूप से स्थिर हो सकता है।
हालांकि, जो लोग इस फील्ड में दृढ़ संकल्प और जुनून के साथ आते हैं, उनके लिए आसमान की कोई सीमा नहीं है। यदि आप संघर्ष करने को तैयार हैं और कानून में गहरी रुचि रखते हैं, तो यह करियर आपको अद्वितीय सम्मान और सफलता दिला सकता है।
क्या आपको लगता है कि वकीलों के लिए भारत में कुछ सुधार किए जाने चाहिए? अपने विचार नीचे कमेंट में साझा करें!