तुर्कों की सरज़मीं पर एक दौर था जब बहादुरी, ईमान और अकीदत के किस्से हर तरफ गूंज रहे थे। उसी ज़मीन पर पैदा हुआ था एक शेरदिल नौजवान – एर्तुग़रुल बे। अपनी बहादुरी और ईमानदारी की वजह से एर्तुग़रुल का नाम दूर-दूर तक मशहूर था। वो अपने कबीले के मुखिया सुलेमान शाह का बेटा था और उसके अंदर अपने वालिद की तरह बहादुरी और इंसाफ का जज़्बा कूट-कूट कर भरा था। लेकिन उसकी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत मोड़ तब आया, जब उसकी मुलाकात हुई हलीमा सुल्तान से।
हलीमा सुल्तान का परिचय
हलीमा सुल्तान एक हुस्न की मल्लिका और दिल की नेक थी। वो सुल्तान की बेटी थी, और उसकी आँखों में एक अनकहा दर्द था। उसकी ज़िन्दगी हमेशा से आसान नहीं थी; उसने अपनी आँखों के सामने बहुत सी जंगे और साजिशें देखी थीं। हलीमा अपनी अज़मत और बहादुरी के लिए जानी जाती थी, लेकिन दिल में कहीं न कहीं एक ख्वाहिश थी – किसी ऐसे इंसान का साथ पाने की, जो उसके दिल को समझ सके। और किस्मत ने उसे मिलाया एर्तुग़रुल से।
पहली मुलाक़ात
किसी जंग के दौरान एर्तुग़रुल ने हलीमा और उसके घरवालों को दुश्मनों के चंगुल से आज़ाद कराया। जब पहली बार उसने हलीमा को देखा, तो उसे एक अजीब सी राहत महसूस हुई। हलीमा की मासूमियत, उसकी हया से भरी आँखें और उसकी खामोश ताकत ने एर्तुग़रुल के दिल पर गहरी छाप छोड़ दी। हलीमा के चेहरे पर वह नूर था जो किसी भी शख्स के दिल में इज़्ज़त और मोहब्बत का एहसास जगा देता था।
एर्तुग़रुल ने अपने दिल की गहराईयों में उसे महसूस किया, लेकिन वह जानता था कि उसकी ज़िन्दगी में इश्क का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उसके कंधों पर अपने कबीले की ज़िम्मेदारी थी। लेकिन मोहब्बत इंसान की मर्ज़ी से कहाँ होती है?
मोहब्बत की शुरुआत
हलीमा और एर्तुग़रुल धीरे-धीरे एक-दूसरे के करीब आने लगे। हलीमा की नज़रों में एक ऐसी शफ्फाकी थी जो एर्तुग़रुल के दिल को आराम देती। जब दोनों अकेले होते तो उन लम्हों में खामोशी भी एक जुबां बन जाती। एर्तुग़रुल की मुसीबतों में हलीमा उसकी हौसला-अफ्जाई करती और उसका साथ देती।
एक बार जब एर्तुग़रुल को दुश्मनों के हाथों कैद कर लिया गया था, तो हलीमा का दिल बेचैन हो गया। उसने अपनी जान की परवाह किए बिना एर्तुग़रुल की मदद करने की ठानी और अपनी हिम्मत से उसे दुश्मनों के चंगुल से छुड़ा लायी।
उन दोनों की मोहब्बत इश्क़ के हर उस पहलू को छूने लगी थी जिसमें वफादारी, इज़्ज़त और अकीदत थी। उनका रिश्ता महज़ दो दिलों का नहीं था, बल्कि ये एक फर्ज़ और जज़्बे का रिश्ता था, जिसमें दोनों ने अपने कबीले और कौम की भलाई के लिए अपने दिलों की ख्वाहिशों को पीछे छोड़ दिया था।
एर्तुग़रुल का निकाह का पैगाम
काफी महीनों बाद, एर्तुग़रुल ने अपने दिल की बात को अपनी वालिदा, हयमे ख़ातून के सामने रखा। उसने बताया कि हलीमा सुल्तान के बगैर उसकी ज़िन्दगी अधूरी है। उसकी मोहब्बत उसकी हिम्मत और उसके कबीले के लिए एक ताकत बनेगी। हयमे ख़ातून को भी हलीमा पसंद थी, और वह एर्तुग़रुल की मोहब्बत और नेक नीयत को समझती थीं।
फिर वह दिन भी आया, जब एर्तुग़रुल ने सबके सामने हलीमा को अपने निकाह का पैगाम दिया। हलीमा की आँखों में आँसू थे, क्योंकि उसने कभी नहीं सोचा था कि वह एक बहादुर और ईमानदार इंसान के साथ ज़िन्दगी बिताएगी। उनके निकाह के बाद दोनों का रिश्ता और भी मज़बूत हो गया, और अब वह साथ मिलकर अपने कबीले की हिफाज़त और दुश्मनों से मुकाबला करने के लिए तैयार थे।
जंग और मोहब्बत का इम्तिहान
एर्तुग़रुल और हलीमा की मोहब्बत को कई इम्तिहानों का सामना करना पड़ा। कई बार दुश्मनों ने एर्तुग़रुल को कमज़ोर करने के लिए हलीमा को निशाना बनाया, लेकिन दोनों ने हमेशा एक-दूसरे का साथ दिया। उनकी मोहब्बत ने उन्हें और भी ताकतवर बना दिया था। हर जंग के बाद, हर मुसीबत के बाद, वे और भी मजबूत बनकर उभरे।
एक बार, एक बड़े साजिश के तहत हलीमा को कैद कर लिया गया। एर्तुग़रुल ने अपनी जान की परवाह किए बिना उसे बचाने के लिए दुश्मनों के इलाके में घुस गया। वो अकेला था, पर उसकी मोहब्बत उसकी ढाल बन गई थी। हलीमा को बचाने के बाद, उन्होंने एक-दूसरे को वादा किया कि चाहे ज़िन्दगी में कितनी भी मुश्किलें आएं, वो हमेशा एक-दूसरे का साथ देंगे।
अंत में
एर्तुग़रुल गाज़ी और हलीमा सुल्तान की मोहब्बत सिर्फ एक रूहानी इश्क़ नहीं थी, बल्कि यह एक जज़्बा था, एक मकसद था। उनके रिश्ते ने तुर्कों को एक नई उम्मीद दी और उनका इश्क़ एक मिसाल बन गया। दोनों का साथ उनकी ताकत थी, और उनकी मोहब्बत ने उनके दुश्मनों को हर बार हराया।
उनका इश्क़ हमेशा के लिए तुर्कों की धरती पर एक मिसाल बनकर अमर हो गया।