भारतीय बैडमिंटन दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहा है, जिसमें खिलाड़ियों की मेहनत और प्रतिभा की हर कोई सराहना करता है। लेकिन क्या इस खेल में भारतीय कोचों को भी उचित मान्यता और मेहनताना मिल पा रहा है?
विष्णु जैसे कोचों ने ट्रीसा-गायत्री जोड़ी के साथ-साथ तनिषा क्रास्टो के साथ भी शुरुआत से काम किया है, और यहां तक कि अश्विनी पोनप्पा-तनिषा की जोड़ी को पेरिस की दौड़ में आगे बढ़ने में मदद की है। इन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के पीछे उनके कोचों की अथक मेहनत और समर्पण है, जिन्होंने उन्हें विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारतीय बैडमिंटन संघ (BWF) और अन्य संस्थाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे न केवल खिलाड़ियों की, बल्कि उनके कोचों की भी सराहना करें और उन्हें उचित मेहनताना प्रदान करें। आखिरकार, एक सफल खिलाड़ी के पीछे एक समर्पित कोच की मेहनत होती है।
इस विषय पर विष्णु का कहना है, “हमें उम्मीद है कि हमें भी पहचान मिलेगी।” उनका यह बयान भारतीय बैडमिंटन कोचों की उस आशा और आकांक्षा को दर्शाता है जो वे इस खेल और अपने शिष्यों के प्रति समर्पण के बावजूद महसूस करते हैं।
यह समय है जब भारतीय बैडमिंटन समुदाय और संबंधित संगठनों को न केवल खिलाड़ियों की सफलता का जश्न मनाना चाहिए, बल्कि उन कोचों की भी सराहना करनी चाहिए जिन्होंने इस सफलता के लिए नींव रखी। उनकी पहचान और मेहनताना उनके समर्पण और योगदान को स्वीकार करने का एक तरीका है।