“बीरबल की दूध की परख”

कहानी:

एक बार अकबर ने अपने दरबारियों की बुद्धिमानी की परीक्षा लेने का फैसला किया। उन्होंने सभी दरबारियों को बुलाया और कहा, “कल सुबह हर एक दरबारी को अपने घर से एक लोटा दूध लेकर आना होगा और उसे राजमहल के बड़े तालाब में डालना होगा।”

दरबारियों को यह काम बहुत आसान लगा, और सभी ने हामी भर दी।

अगले दिन सुबह-सुबह सभी दरबारी एक-एक करके तालाब में दूध डालने आए। लेकिन एक-एक करके सभी ने सोचा, “अगर मैं पानी डाल दूँ तो किसी को क्या पता चलेगा? इतने बड़े तालाब में एक लोटा पानी मिलाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

सबने दूध के बजाय पानी डाल दिया।

कहानी:

जब अकबर ने बीरबल के साथ तालाब की जांच की, तो देखा कि तालाब में केवल पानी भरा हुआ था, दूध का कहीं नामोनिशान नहीं था।

अकबर को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने दरबारियों को बुलाया। अकबर ने कहा, “तुम सबने मुझे धोखा दिया है।”

लेकिन बीरबल ने हंसते हुए अकबर से कहा, “जहाँपनाह, इसमें कोई धोखा नहीं है, बल्कि यह एक अच्छा सबक है।”

अकबर ने पूछा, “वह कैसे?”

बीरबल ने समझाया, “जहाँपनाह, यह बताता है कि जब हर कोई यह सोचता है कि उनके एक छोटे से धोखे से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तो सामूहिक रूप से एक बड़ा धोखा बन जाता है। अगर हर दरबारी ईमानदारी से दूध लाता, तो तालाब दूध से भरा होता।”

मोरल:

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जब हम सब सोचते हैं कि हमारे छोटे-छोटे गलत कामों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तो वही गलतियां मिलकर एक बड़ी समस्या बन जाती हैं। ईमानदारी से किए गए छोटे-छोटे काम ही सामूहिक रूप से बड़े परिणाम लाते हैं।

इस प्रकार, बीरबल ने अपनी बुद्धिमानी से अकबर को जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया।