“बीरबल का न्याय: चार मुर्ख दरबारी”

कहानी:

  1. एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल, मुझे शहर के चार सबसे बड़े मूर्ख ढूंढकर लाओ।”
  2. बीरबल मुस्कुराया और तुरंत शहर की ओर निकल पड़ा।
  3. रास्ते में उसने एक आदमी को देखा जो बैल की पीठ पर बैठकर अपने सिर पर घास का गट्ठर रखे हुए था।
  4. बीरबल ने पूछा, “तुम घास को बैल पर क्यों नहीं रख देते?”
  5. आदमी बोला, “बैल पहले से भारी काम कर रहा है, मैं उसका बोझ नहीं बढ़ाना चाहता।”
  6. बीरबल ने उसे पहला मूर्ख मान लिया और आगे बढ़ा।
  7. कुछ दूर जाकर उसने देखा कि एक आदमी कुएं में रस्सी डालकर चांद को पकड़ने की कोशिश कर रहा है।
  8. बीरबल ने पूछा, “तुम क्या कर रहे हो?”
  9. आदमी ने कहा, “मैं कुएं में चांद को पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं!”
  10. बीरबल ने उसे दूसरा मूर्ख माना और उसे भी साथ ले लिया।
  11. फिर बीरबल दरबार में लौट आया और अकबर से कहा, “जहाँपनाह, तीसरा और चौथा मूर्ख मैं और आप हैं, क्योंकि हम इन मूर्खों को खोजने की कोशिश कर रहे हैं।”
  12. अकबर हंसी से लोट-पोट हो गए और बोले, “बीरबल, तुम्हारी बुद्धिमानी के आगे कोई नहीं टिक सकता।”

मोरल:

कभी-कभी मूर्खता को पहचानने के लिए खुद को भी उस नजर से देखना पड़ता है।