“बीरबल का अनोखा इंसाफ: आधी सब्जी का राज़”
कहानी:
एक दिन अकबर के दरबार में दो किसान आए और झगड़ने लगे। दोनों के हाथों में एक बड़ी लौकी थी, और दोनों का दावा था कि यह लौकी उनकी है। एक किसान बोला, “जहाँपनाह, मैंने इस लौकी को बड़ी मेहनत से उगाया है, और यह मेरी है।”
दूसरा किसान बोला, “नहीं, यह मेरी खेत की है और मैंने ही इसे सींचा है।”
अकबर ने दरबारियों की तरफ देखा, लेकिन कोई इस झगड़े का हल नहीं निकाल पाया। तभी बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “जहाँपनाह, इस मामले का हल मेरे पास है।”
कहानी:
बीरबल ने दोनों किसानों से कहा, “तुम दोनों में से जिसने भी इस लौकी को उगाया है, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि इसे आधा कर दिया जाए।”
बीरबल ने दरबारियों को आदेश दिया कि लौकी को आधा काट दिया जाए। जैसे ही दरबारियों ने कटार उठाई, पहला किसान चिल्ला पड़ा, “नहीं! इसे मत काटो, चाहे इसे उसे ही दे दो। मैं अपनी मेहनत का फल बर्बाद होते नहीं देख सकता।”
दूसरा किसान चुपचाप खड़ा रहा। बीरबल ने अकबर की ओर देखा और कहा, “जहाँपनाह, असली मालिक यही है। असली मेहनत करने वाला अपनी मेहनत का नुकसान नहीं देख सकता।”
अकबर ने पहले किसान को लौकी वापस देते हुए कहा, “बीरबल, तुमने एक बार फिर साबित कर दिया कि तुमसे बड़ा न्यायप्रिय कोई नहीं।”
मोरल:
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि असली मालिक वही होता है जो अपनी चीज़ से जुड़ा होता है और उसकी कद्र करता है। सच्चाई हमेशा किसी न किसी रूप में बाहर आ जाती है।
इस प्रकार, बीरबल ने अपनी बुद्धिमानी से अकबर के दरबार में न्याय की मिसाल कायम की और सच्चे मेहनती किसान को उसका हक दिलवाया।