“बीरबल का न्याय: चार मुर्ख दरबारी”
कहानी:
- एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल, मुझे शहर के चार सबसे बड़े मूर्ख ढूंढकर लाओ।”
- बीरबल मुस्कुराया और तुरंत शहर की ओर निकल पड़ा।
- रास्ते में उसने एक आदमी को देखा जो बैल की पीठ पर बैठकर अपने सिर पर घास का गट्ठर रखे हुए था।
- बीरबल ने पूछा, “तुम घास को बैल पर क्यों नहीं रख देते?”
- आदमी बोला, “बैल पहले से भारी काम कर रहा है, मैं उसका बोझ नहीं बढ़ाना चाहता।”
- बीरबल ने उसे पहला मूर्ख मान लिया और आगे बढ़ा।
- कुछ दूर जाकर उसने देखा कि एक आदमी कुएं में रस्सी डालकर चांद को पकड़ने की कोशिश कर रहा है।
- बीरबल ने पूछा, “तुम क्या कर रहे हो?”
- आदमी ने कहा, “मैं कुएं में चांद को पकड़ने की कोशिश कर रहा हूं!”
- बीरबल ने उसे दूसरा मूर्ख माना और उसे भी साथ ले लिया।
- फिर बीरबल दरबार में लौट आया और अकबर से कहा, “जहाँपनाह, तीसरा और चौथा मूर्ख मैं और आप हैं, क्योंकि हम इन मूर्खों को खोजने की कोशिश कर रहे हैं।”
- अकबर हंसी से लोट-पोट हो गए और बोले, “बीरबल, तुम्हारी बुद्धिमानी के आगे कोई नहीं टिक सकता।”
मोरल:
कभी-कभी मूर्खता को पहचानने के लिए खुद को भी उस नजर से देखना पड़ता है।