“बीरबल और चोर की पहचान”
कहानी:
एक दिन अकबर के महल में एक बहुमूल्य हार चोरी हो गया। महल के सारे पहरेदार और सेवक परेशान हो गए। अकबर ने दरबार में सभी दरबारियों और नौकरों को बुलाया और कहा, “जिसने यह हार चुराया है, वह तुरंत स्वीकार कर ले। वरना सबके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।”
लेकिन कोई भी आगे नहीं आया। अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा, “बीरबल, मुझे पूरा यकीन है कि तुम इस चोर का पता जरूर लगा सकते हो।”
बीरबल ने कुछ सोचा और मुस्कुराते हुए कहा, “जहाँपनाह, यह काम मेरे लिए बहुत आसान है। मुझे बस एक काले रंग की चूड़ी चाहिए।”
दरबार में हलचल मच गई कि बीरबल काले रंग की चूड़ी का क्या करेगा!
कहानी:
बीरबल ने एक काले कपड़े में लपेटी हुई चूड़ी मंगवाई और सभी नौकरों को एक पंक्ति में खड़ा कर दिया। उसने कहा, “यह चूड़ी जादुई है। इसे अगर कोई चोर छू लेगा, तो इसके हाथ काले हो जाएंगे।”
सभी नौकरों को बारी-बारी से चूड़ी छूने के लिए कहा गया। सभी ने डरते-डरते चूड़ी छूई, लेकिन बीरबल चुपचाप सबको देखता रहा।
आखिरकार, बीरबल ने एक नौकर की ओर इशारा किया और बोला, “जहाँपनाह, यही चोर है!”
अकबर ने चौंकते हुए पूछा, “बीरबल, तुमने कैसे पहचाना?”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “जहाँपनाह, असल में वह चूड़ी जादुई नहीं थी। मैंने सिर्फ इतना कहा था कि चोर के हाथ काले हो जाएंगे, लेकिन असल चोर ने डर के मारे चूड़ी को छुआ ही नहीं। उसके हाथ सबसे साफ थे, और इसी से उसकी चोरी का राज खुल गया।”
मोरल:
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि डर और अपराधबोध इंसान को बेनकाब कर देते हैं। सत्य के सामने झूठ कभी टिक नहीं सकता।
इस प्रकार, बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना किसी जादू के चोर को पकड़कर अकबर को न्याय दिलवाया।